5 दिसम्बर को जब मध्यप्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू हुआ, तब सदन में आ रहे कई विधायकों के चेहरे पर दहशत थी, मानो मौत उनका पीछा कर रही हो. माहौल वाकई किसी डरावनी फिल्म या जासूसी उपन्यास के सस्पेंस सरीखा था, जिसमें एक के बाद एक मौतें हो रही हों और इनकी वजह किसी को समझ नहीं आ रही हो.

दरअसल में राज्य के अधिकांश विधायकों के मन में दोबारा से यह डर बैठ गया है कि हो न हो विधानसभा भवन मनहूस है या इसमें कोई वास्तुदोष है जिसके चलते एक के बाद एक विधायकों की मौतें हो रही हैं.

बीती 25 अक्टूबर को कांग्रेसी विधायक सत्यदेव कटारे की मौत के बाद यह डर और गहरा गया था, जो विधानसभा सत्र शुरु होते ही भवन के गलियारों में दिखा. कुछ प्रेस फोटोग्राफर्स यह चर्चा करते देखे भी गए कि जाने कब फिर से पूजा, पाठ, यज्ञ, हवन और वास्तुदोष निवारण का फरमान आ जाए.

13 साल, 29 मौतें

साल 1998 में अरेरा हिल्स स्थित नए विधानसभा भवन में जब कामकाज शुरू हुआ था, तब सभी ने नई ईमारत की भव्यता की खूब तारीफ की थी, पर 2003 आते आते यानि 5 साल में 10 विधायकों की मौतें हुईं, तो इस नए भवन पर मनहूसियत का ठप्पा लग गया जो अब तक बरकरार है.

2003 से लेकर 2008 तक 12वीं विधानसभा के दौरान भी 8 विधायकों की मौतें हुईं, तो विधानसभा भवन के मनहूस होने का शक यकीन में बदल गया. 13वीं विधानसभा 2013 तक चली और इस दौरान 6 विधायक काल के गाल में समा गए. फिर 2013 के बाद से लेकर अब तक फिर 6 विधायकों की मौतें हुईं, तो एक बार फिर यह चर्चा शुरू हो गई है कि विधानसभा भवन का ‘ट्रीटमेंट’ होना चाहिए. इलाज होना चाहिए यानि फिर से पूजा पाठ या दूसरे टोटके कर कोई ऊपरी बाधा या हवा जो भी हो उसे दूर करने जतन किए जाना चाहिए.

खूब हुए ड्रामे

कांग्रेसी शासनकाल में विधानसभा अध्यक्ष पंडित श्रीनिवास तिवारी ने विधायकों की मौतों का शुरू हुआ सिलसिला रोकने एक खास किस्म की पूजा कराई थी. तब विंध्य इलाके के पांच नामी पंडितों ने भोपाल आकर सदन के दरवाजे पर खुलेआम पूजा पाठ कर सरकार को भरोसा दिलाया था कि इससे बला टल गई.

लेकिन विधायकों की मौतें होती रहीं, तो अंधविश्वास भाजपा सरकार के राज में भी खूब फला फूला. विधानसभा अध्यक्ष ईश्वरदास रोहाणी ने भी इस कथित मनहूसियत को टालने उपाय किए थे, जिनके तहत मुख्य दरवाजे के टाइल्स बदले गए थे ओर सदन के अंदर की सीटों का रंग बदला गया था. अलावा इसके विधानसभा अध्यक्ष के चेम्बर के नीचे एक पंडित के मशवरे पर मैदान बनाकर यहां बना नर्मदा कुण्ड बंद कराया गया था. इतने पर भी बात नहीं बनी तो विधानसभा अध्यक्ष और प्रमुख सचिव के चेम्बर्स के सामने के बैठने के इंतजाम भी बदल दिए गए थे.

इसके बाद एक बेतुका काम यह किया गया था कि विधानसभा स्टाफ केम्पस में बने दुर्गा मंदिर में बिना पर्वत वाले हनुमान की स्थापना की गई थी. इस बारे में किसी पंडित ने मशवरा यह दिया था कि पर्वत वाला हनुमान सिर्फ राम की हिफाजत करता है, जबकि बिना पर्वत वाला हनुमान आम लोगों की हिफाजत करता है.

अंधविश्वास या वहम के इलाज का यह टोटका भी बेकार साबित हुआ, तो सुंदरकांड के पाठ विधानसभा भवन में होने लगे. एक वक्त में तो यहां का माहौल देख लगता था कि यह विधानसभा नहीं, बल्कि कोई नामी मंदिर है. विधायकों की मौतें होती रहीं, खासतौर से हादसों में कुछ युवा विधायक मरे तो फिर से मांग उठने लगी कि कुछ किया जाए. मौजूदा विधानसभा अध्यक्ष सीताशरण शर्मा इस मसले पर हाल फिलहाल खामोश हैं.

नहीं सुधरेंगे

मध्यप्रदेश की राजनीति में धर्म कर्म बेहद आम बात है, तमाम नेता कुछ और करें ना करें पर पूजा पाठ यज्ञ हवन और दूसरे धार्मिक जलसों में जरूर शिरकत करते हैं. इसके बाद भी भगवान जाने क्यों विधायकों से खफा हैं, जो बजाय जिंदगी बचाने के जिंदगियां छीन रहा है. इस सवाल का जवाब हालांकि धर्म ग्रंथों में है कि मौत तो शाश्वत है और कब किसकी कैसे कहां आ जाए यह किसी को नहीं मालूम.

और ‘जिन्हें’ मालूम रहता है वे पूजा पाठ, यज्ञ, हवन और वास्तु दोष दूर करने के नाम पर हर बार तगड़ी दक्षिणा खीसे में डालकर चलते बनते हैं. अब फिर कुछ कहने की मांग उठ रही है तो विधायकों की मानसिकता पर तरस ही खाया जा सकता है, जो डरे हुए हैं क्योंकि अंधविश्वास के शिकार हैं.

यह मानने समझने कोई तैयार नहीं कि अधिकांश विधायकों की मौतों चाहे वे हार्ट अटैक से हुई हों या हादसों की जिम्मेदार खुद उनकी लापरवाही रही है. अगर विधानसभा भवन मनहूस होता, तो उसकी गाज यहां काम कर रहे मुलाजिमों पर गिरनी चाहिए थी, क्योंकि वे विधायकों से कहीं ज्यादा वक्त यहां बिताते हैं. पाखंडी माहौल सुधरेगा ऐसा लग नहीं रहा, क्योंकि कई विधायकों ने अपने लेवल पर धार्मिक और तांत्रिक उपाय शुरु कर दिए हैं.

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