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मां ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटी, जिस ने पैदा किया है, वह रहने का भी इंतजाम करता है और खाने का भी. लेकिन यह बताओ बेटी कि इतना बड़ा कदम तुम ने उठाया किस लिए?’’

‘‘मां जी, मेरे साथ जो भी हुआ, वह वक्त का फेर था. मेरे साथसाथ बच्चे भी घर से बेघर हो गए. मेरे पति और मैं ने शादी अपनी मरजी से की थी. मेरे मां बाप मेरी मरजी के आगे कुछ नहीं बोल सके. शादी के कुछ सालों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन धीरेधीरे पति का रवैया बदलता गया.’’

थोड़ा रुक कर वह आगे बोली, ‘‘शाहिदा के बाद शावेज पैदा हुआ. इस के जन्म के कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि इकबाल ने दूसरी शादी कर ली है. मैं ने एक दिन उन से कहा, ‘तुम ने दूसरी शादी कर ली है तो उसे घर ले आओ. हम दोनों बहनें बन कर रह लेंगे. तुम 2-2 दिन घर नहीं आते तो बच्चे पूछते हैं, मैं इन्हें क्या जवाब दूं?’

‘‘उस ने कुछ कहने के बजाए मेरे मुंह पर थप्पड़ मारने शुरू कर दिए. उस के बाद बोला, ‘मैं ने तुम्हें इतनी इजाजत नहीं दी है कि तुम मेरी निजी जिंदगी में दखल दो. और हां, कान खोल कर सुन लो, तुम अपने आप को अपने बच्चों तक सीमित रखो, नहीं तो अपने बच्चों को साथ लो और मायके चली जाओ.’

‘‘इस के बाद इकबाल अपना सामान ले कर चला गया और कई दिनों तक नहीं आया. फोन भी नहीं उठाता था. एकदो बार औफिस का चपरासी आ कर कुछ पैसे दे गया. काफी छानबीन के बाद मैं ने पता लगा लिया कि उन की दूसरी बीवी कहां रहती है. बच्चों को स्कूल भेज कर मैं उस के फ्लैट पर पहुंच गई.

‘‘कालबैल बजाने के थोड़ी देर बाद एक लड़की ने दरवाजा खोला. मैं ने अनुमान लगा लिया कि यही वह लड़की है, जिस ने मेरे जीवन में जहर घोला है. वह भी समझ गई कि मैं इकबाल की पत्नी हूं. उस ने मुझे अंदर आने को कहा. मैं अंदर गई, कमरे में सामने इकबाल की बड़ी सी फोटो लगी थी, उसे देखते ही मेरे शरीर में आग सी लग गई.

‘आपी, मैं ने उन से कई बार कहा कि वह अपने बच्चों के पास जा कर रहें, लेकिन वह मुझे डांट कर चुप करा देते हैं.’ उस ने कहा. इस के बाद उस ने मुझे पीने के लिए कोक दी.

‘‘मैं ने उस के पहनावे पर ध्यान दिया, वह काफी महंगा सूट पहने थी और सोने से लदी थी. इस से मैं ने अनुमान लगाया कि इकबाल उस पर दिल खोल कर खर्च कर रहे हैं. जबकि हमें केवल गुजारे के लिए ही पैसे देते हैं. उस ने अपना नाम नाहिदा बताया.

मैं ने कहा, ‘देखो नाहिदा, तुम इकबाल को समझाओ कि वह तुम्हें ले कर घर में आ कर रहें. हम सब साथसाथ रहेंगे. बच्चों को उन की बहुत जरूरत है. उस ने कहा, ‘आपी, मैं उन्हें समझाऊंगी.’

‘‘उस से बात कर के मैं घर आ गई. जो आंसू मैं ने रोक रखे थे, वह घर आ कर बहने लगे. शाम को इकबाल का फोन आया. उन्होंने मुझे बहुत गालियां दीं, साथ ही कहा कि मेरी हिम्मत कैसे हुई उन का पीछा करने की. मैं ने 2-3 बार उन्हें फोन किया, उन्होंने केवल इतना ही कहा कि उन्हें मेरे ऊपर भरोसा नहीं है. बच्चों के बारे में उन्होंने कहा कि उन्हें शक है कि ये उन के बच्चे नहीं हैं. फिर मैं ने सोच लिया कि अब मुझे उन के साथ नहीं रहना. वह पत्थर हो चुके हैं.’’

इतना कह कर सुरैया सिसकियां भरभर कर रो पड़ी. अक्को और उस की मां ने कहा, ‘‘आप रोएं नहीं, जब तक आप का दिल चाहे, आप यहां रहें, आप को किसी चीज की कमी नहीं रहेगी.’’

जिस आबादी में अक्को कुली का घर था, उस के आखिरी छोर पर नई आबादी थी. वह रेडलाइट एरिया था. गरमियों के दिन थे, छत पर चारपाइयां लगा दी जातीं. सब लोग छत पर ही सोते थे. शाम होते ही नई आबादी में रोशनी हो जाती, संगीत और घुंघरुओं की आवाज पर सुरैया बुरी तरह चौंकी.

अक्को ने बताया कि ये रेडलाइट एरिया है, यहां शाम होते ही नाचगाना शुरू हो जाता है. मोहल्ले वालों ने बहुत कोशिश की कि रेडलाइट एरिया यहां से खत्म हो जाए, लेकिन किसी की नहीं सुनी गई. अब हमारे कान तो इस के आदी हो गए हैं.

ऊपर छत पर खड़ेखड़े बाजार में बैठी वेश्याएं और आतेजाते लोग दिखाई देते थे. शाहिदा ने वहां का नजारा देख कर एक दिन अपने भाई शावेज से पूछा, ‘‘भाई, इन दरवाजों के बाहर कुरसी पर जो औरतें बैठी हैं, वे क्या करती हैं? कभी दरवाजा बंद कर लेती हैं तो थोड़ी देर बाद खोल देती हैं. फिर किसी दूसरे के साथ अंदर जाती हैं और फिर दरवाजा बंद कर लेती हैं.’’

शावेज ने जवाब दिया, ‘‘मुझे क्या पता, होगा कोई उन के घर का मामला.’’

उस समय शावेज भी खुलते बंद होते दरवाजों को देख रहा था. सुरैया भी यह सब रोजाना देखती थी, कुछ इस नजरिए से मानो कोई फैसला करना चाहती हो. जो पैसे वह अपने साथ लाई थी, धीरेधीरे वे खत्म हो रहे थे. बस कुछ जेवरात बाकी थे, जिन में से एक लौकेट और चेन बिक चुकी थी.

एक दिन अक्को कुली और सुरैया छत पर बैठे दीवार के दूसरी ओर उन दरवाजों को खुलता और बंद होते देख रहे थे. तभी सुरैया ने पूछा, ‘‘अक्को, धंधा करने वाली इन औरतों को पुलिस नहीं पकड़ती?’’

अक्को ने बताया कि उन्हें सरकार की ओर से धंधा करने का लाइसेंस दिया गया है. उन्हें लाइसेंस की शर्तों पर ही काम करना होता है.

सुरैया ने पूछा, ‘‘अक्को, क्या तुम कभी उधर गए हो?’’

‘‘एकआध बार अनजाने में उधर चला गया था, लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रही हो?’’ अक्को ने आश्चर्य से पूछा.

सुरैया कहने लगी, ‘‘मेरे अंतरमन में एक अजीब सी लड़ाई चल रही है. मैं इकबाल को यह बताना चाहती हूं कि औरत जब बदला लेने पर आ जाए तो सभी सीमाएं लांघ सकती है.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं?’’ अक्को चौंका.

‘‘मैं इस बाजार की शोभा बनना चाहती हूं.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है?’’ अक्को ने साधिकार उसे डांटते हुए कहा.

‘‘अक्को तुम मेरे जीवन के उतारचढ़ाव को नहीं जानते. मैं ने इकबाल के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया. उस की खूब सेवा भी की और इज्जत भी बना कर रखी. लेकिन उस ने मुझे क्या दिया?’’ सुरैया की आवाज भर्रा गई.

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