तीन साल की उम्र से अभिनय करते रहे पार्थो गुप्ते ने सात साल की उम्र में बाल कलाकार के रूप में 2011 में अपने पिता अमोल गुप्ते निर्देशित फिल्म ‘‘स्टेनली का डिब्बा’’ में मुख्य किरदार निभाकर जबरदस्त शोहरत बटोरी थी. इस फिल्म के लिए पार्थो गुप्ते को सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रीय पुरस्कार के अलावा फिल्मफेअर अवार्ड तथा जर्मनी के ‘‘शिंलगेल इंटरनेशनल फिल्म फेटिवल 2011’ में पूरे विश्व के 140 बच्चों के बीच सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का अवार्ड मिला था. उसके बाद उन्होंने फिल्म ‘‘हवा हवाई’’ में अभिनय किया था. पर अब अमोल गुप्ते ने अपनी नई फिल्म ‘‘स्निफ’’ में पार्थो गुप्ते की बजाय नए बाल कलाकार को खुशमित गिल को हीरो बनाया है.

पार्थो की बजाय खुषमित के साथ फिल्म बनाने के संदर्भ में अमोल गुप्ते कहते हैं-‘‘मेरा बेटा पार्थो अब साढ़े 15 साल का हो गया है. जबकि मेरी फिल्म ‘स्निफ’ का नायक आठ साल का है. इसलिए नए प्रतिभाशाली कलाकार खुशमीत गिल को इस फिल्म से जोड़ा है.

जब हमने अमोल गुप्ते से पूछा कि क्या उनके बेटे पार्थो गुप्ते ने अभिनय से दूरी बना ली है? तो अमोल गुप्ते ने कहा-‘‘वह बहुत कुछ रचनात्मक काम कर रहा है. वह कविता लिख रहा है. छोटी छोटी फिल्में बना रहा है. संगीत की धुनें बना रहा है. उसकी कविताएं किताब के रूप में छप चुकी हैं. उसकी कविताओं की किताबें इंग्लैड व अमरीका में में छप चुकी हैं. वह अपने गाने खुद लिखता है. संगीतकार है. नौ साल से वह गिटार सीख रहा है. वह अपने अलग संसार में जी रहा है.

जब मैं कभी कहता हूं कि बेटा एक फिल्म बनानी है, उस पर बात करनी है. तो कहता है,‘पिताजी अभी मैं एक फिल्म बना रहा हूं,उसे पूरी कर लूं. फिर सोचूंगा.’ अंतरराष्ट्रीय सिनेमा और अंतरराष्ट्रीय कलाकारों को लेकर उसकी समझ बहुत अच्छी है. उसे शोहरत या चमक दमक से कोई वास्ता नहीं है. वह यह सोचता है कि यदि कैमरे में साठ का लेंस लगाउंगा, तो चेहरा इस तरह से नजर आएगा. उसके पास अपना कैमरा है. अपने उपकरण हैं.’’

पार्थो गुप्ते किस तरह की फिल्में बनाते हैं? इस सवाल पर अमोल गुप्ते ने बताया-‘‘उसकी बहुत अनोखी सोच है. हमारे मकान की बालकनी में एक कबूतर ने दो बच्चे दिए, उस अंडे से उस बच्चे के उड़ने तक की पूरी फिल्म बना डाली. जब वह 5 वीं कक्षा में पढ़ता था, तब उसने घर पर बिल्ली ने बच्चे जन्म दिए. बच्चे पर फिल्म बना डाली थी. घर में वीडियो कैमरा था. वीडियो कैमरे में शूट करता था. उसकी मां दीपा भाटिया बालीवुड की बहुत बड़ी एडिटर हैं. अपनी मां की एडिटिंग मशीन पर बैठकर खुद ही एडिट कर लेता है. उसकी रूचि पूरी तरह से विश्व सिनेमा में है, बालीवुड में नहीं. उसे पता है कि पूरी दुनिया में सिनेमा जगत के महान लोग कौन हैं और वह क्यों महान हैं? उसके दिमाग में कोई कंफ्यूजन नही हैं. उसे राष्ट्रीय पुरस्कार सहित कई पुरस्कार मिल चुके हैं. इससे वह अपने आपको बड़ा नहीं मानता. यह यह नहीं गिनता कि आज कितने लोगों ने उससे आटोग्राफ मांगा? मेरे बेटे पार्थो को फिल्म फेयर, स्क्रीन के अलावा राष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुका है. जर्मनी में 140 बाल कलाकारों के बीच उसे सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार चुना गया था. हर अवार्ड को लाकर वह अलमारी में बंद करके भूल गया. उसने अपने कमरे में भी इन अवार्ड को नही सजाया. उसकार मानना है कि इन पुरस्कारों से उसे कोई फायदा नही होना है.’’   

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