लेखक-मनोज शर्मा
साड़ी के पल्लू से पेशानी पोंछते हुए सुलेखा ने सिगनल पर आती गाड़ी को देखा और उसकी तरफ दौड़ पड़ी. गाड़ी के शीशे पर हथेली से थपकी देते हुए उसने अपने दोनों हाथों से ताली पीटी और पीछे आने वाली गाड़ी के बोनेट पर अंगुलियों से हल्की सी टाप दी.गाड़ी का शीशा खुला उसमें से ड़ाइवर सीट की तरफ से एक हाथ निकला जिसमें मरा हुआ दस का नोट था जिसे देखते ही सुलेखा ने दोनों हाथों की कलाइयों को मोड़ते हुए कानों की ओर घुमाते हुए मुंह से दुआ दी!
“भैया आपकी हर इच्छा पूरी हो.” चेहरे पर हंसी के भाव लिए सुलेखा ने हाथ जोड़ दिये और अगली गाड़ी की ओर बढ़ गयी.
सुलेखा एक किन्नर है जिसे प्रायः मैंने ऑफिस से शाम को निकलते इसी सिगनल पर देखा है कभी गहरे हरे रंग की साड़ी में तो कभी लाल रंग के कढ़ाई वाले सूट में.सुलेखा के गोल चेहरे पर ऊठी नाक है पर लंबे बाल हैं गहरी काली आंखों पर खासा मेकअप होता है.अक्सर सिगनल पर शाम को सुलेखा और उस जैसी दो तीन किन्नरों की टोली गाड़ियों से पैसा आदि की मांग करती देखी जाती है.उस रोज़ पिंक सूट में सुलेखा एक आॅटों में बैठे युगल से पैसा मांग रही थी पर आटो में बैठे युवक ने उसे वहां से आगे बढने का निर्देश दिया और साथ में बैठी युवती संग बतियाने लगा. क्या यार, ये हिजडी यहां डेली फटक जाती है कोई काम नहीं है क्या इसको ?आटो के शीशे में सुलेखा बीच बीच में दूसरी किसी गाड़ी से पैसा मांगती दिखाई दे रही है. नहीं नहीं इनका यही तो काम है इसी पैसे से तो इनकी ज़िन्दगी चलती है !देखो साड़ी कितनी सुंदर है ! उत्सुक्तावश चेहरा आॅटों से बाहर झांकता हुआ बोलता है.एक दूसरी महिला किन्नर पास ही में गाड़ियों के इर्द गिर्द घूमती हुई सबको बोलती है, “ऐ सर जी!भला लो आपका.”
“हैलो मैडम.”
“भैया कैसे हो.”
“सर जी ठीकठाक.”
मुहं पर मुस्कुराहट के साथ बीच बीच में ताली पीटती तेज दौड़ जाती हैं.
सड़क के इस छोर से उस छोर तक दोपहर से शाम और फिर देर रात बिना रूके अनवरत हर सिगनल पर इसी तरह न जाने कितने किन्नर युवा या अधेड़ अपनी ज़िन्दगी जीते हैं.हरा सिगनल जैसे ही ओरेंज होता है इन लोगों की उछल कूद आरंभ होने लगती है और कुछ ही मिनटों यानि के सिगनल जब तक लाल रहता है ये मस्ती,स्फूर्ति व मशक्कत से हर सामने आने वाले लोगों से आत्मीयता स्थापित करने की पुरजोर कोशिश करते हैं.सुलेखा भी किन्नरों की इसी टोली का एक हिस्सा है जो मुझे जब भी सिगनल से गुज़रते देखती है मुस्कुराकर बोलती है “भैया या सर जी नमस्ते” या अन्य किसी अभिवादन उक्ति लिए प्रकट हो जाती है. उसी तरह जैसे इक्के पर बैठा मीठी मीठी बातों से रास्ता मांगता आगे बढ़ता है. सुलेखा के चेहरे पर तन्मयता है, कोई क्रोध या द्वेष नहीं अर्थात कोई कुछ दे दे तो ठीक वरना किसी दूसरी गाड़ी के करीब चली जाती है. कोई ना नुकर नहीं और न कोई झगड़ा. जाने कितनी ही मर्तवा मैंने उसे अपने दफ्तर के करीब यानि के बाराखंभा रोड़ के चौराहे पर बने सिगनल पर देखा है. आज से नहीं बल्कि करीब तीन चार सालों से. मुझे उस रोज़ जब ऑफिस के काम से शिमला जाना था तो लगा कि उसकी मुस्कान मेरे बहुत काम की होगी.
दिल में ख़ुशी हो तो सफलता मिलने के अधिक चांस होते हैं. रोज़ सुलेखा को सिगनल पर देखते ही मैं मुस्कुरा दिया वो मेरे करीब से गुजरते हुई थोड़ा मुस्कुराई और बोली ” भैया गुड इवनिंग.” उस रोज़ मैंने उसकी आंखों में खुशी देखी थी अब चूंकि सड़क के दूसरी ओर ग्रीन सिगनल की वजह से ट्रैफिक दोोड़ रहा था तो उसे देखते ही दिन वाली बात याद आ गयी मैंने झट से अपने पर्स से पचास रूपये निकाले और सुलेखा के हाथों में रख दिये उसकी आंखों में चमक थी उसने नोट को माथे पर लगाकर अपने पर्स में रख लिया व एक सिक्का निकाला जिसे अपने मस्तक आंखों व होठो से छूते हुए पुनः मेरे हाथ में रख दिया यही नही थोड़े चावल भी एक डिबिया से निकाले और मुझे देते हुए कहा, ” भैया!आपके सारे काम पूरे होंगे!आपकी सारी इच्छाएं पूर्ण हों.” सड़क के दूसरी और निकलती गाड़ियों की गति काफी तीव्र थी. एक मोटर साइकिल पर सवार युवक सुलेखा को देखकर अजीब सी टोंट कसता हुआ वहां से निकला और एक गाड़ी में बैठी युवती ने अनमने भाव से उसे देखते हुए स्पीड बढ़ा दी. सुलेखा अपनी रोज़मर्रा ज़िन्दगी में पूरी तरह व्यस्त दिख रही थी गाड़ी के सिगनल को बदलता देख फिर सड़क के दूसरे किनारे की ओर दौड़ लगा दी. सड़क के एक किनारे मोती के फूलों की गंध से पूरी सड़क महक उठती थी यह आज ही नहीं बल्कि ऐसा रोज़ शाम को होता है जब एक औरत जो पचास के लगभग की होगी हाथों में मोतियों के फूलों की माला लिए फिरती है. मैंने अक्सर ग्राहकों को उस महिला से माला खरीदते देखा था गाड़ी वाले भी और ऑटों की पिछली सीट पर बैठे लोगों के द्वारा भी. सुलेखा और अन्य किन्नर इस महिला से मजाक आदि कर लेते हैं पर मैंने कभी इन्हें आपस में झगड़ते नहीं देखा.
पिछले तीन चार दिनों से एक बीमारी ने सारे देश को चौका दिया. हर तरफ बस एक ही बात कोरोना वायरस! सुना है दिल्ली बंद हो रही है
आॅफिस से निकलते हुए शाम को मुझसे किसी ने पूछा.मैंने चौंकते हुए कहा!अच्छा !
हां यार सुना तो मैंने भी है!
दुधिया रोशनी में नहायी सड़क आस पास की तेज रोशनी से और भी चमक रही थी पर आज एतिहातन सड़क पर भीड़ कम थी.भीड़ को कम देखकर मुझे लगा कि मैं आज लेट हो गया हूं कलाई पर बंधी घड़ी में समय देखा तो महसूस किया वही टाइम तो है जो रोज़ होता है.दो एक पुलिस मुंह पर मास्क लगाकर खड़े थे वो सामनै खड़ी जीप में चढ़ते हुए बात करने लगे! हां दिल्ली में लाॅक डाऊन कन्फर्म है!