भोपाल में दूरदराज के इलाकों से जो छात्र पढ़ने के लिए आते हैं उन के सामने पहली परेशानी रहने की होती है. दलित और आदिवासी छात्रों का सब से बड़ा सहारा सरकारी होस्टल होते हैं जिन में फीस न के बराबर होती है. वैसे, इन्हें रहने के लिए शहर में कोई किराए का मकान नहीं देता क्योंकि ये छोटी जाति के होते हैं. आज से 5 साल पहले ऐसी ही एक आदिवासी छात्रा सृष्टि उइके पढ़ने के लिए छिंदवाड़ा से भोपाल आई थी तो तब के कलैक्टर निशांत वरवड़े की सिफारिश पर शहर के बीचोंबीच प्रोफैसर कालोनी के कमला नेहरू गर्ल्स होस्टल में उसे दाखिला मिल गया था. सृष्टि पौलिटैक्निक की पढ़ाई पूरी करने के बाद भोपाल के ही एमएलबी गर्ल्स कालेज से बीए की पढ़ाई कर रही थी. होस्टल में आ कर उस पर क्या गुजरी, इस से पहले यह जान लेना जरूरी है कि इस के पहले उस पर क्याकुछ नहीं गुजरी थी. कम उम्र में ही मांबाप के चल बसने से सृष्टि की तो मानो दुनिया ही उजड़ गई थी. कुछ साल उस के मामा ने उसे पालापोसा और पढ़ाया. बाद में यह जिम्मेदारी मौसी ने उठा ली. सृष्टि को खेलनेकूदने की उम्र में अंदाजा हो गया था कि अगर दुनिया में खुद को साबित करना है और अपने पांवों पर खड़े होना है, तो खूब पढ़ना पढ़ेगा. उस ने मन लगा कर पढ़ाई की और पास भी होती गई. पर जैसे ही कमला नेहरू गर्ल्स होस्टल में वह आई तो उसे लगा मानो किसी बदतर जगह में आ गई हो. होस्टल का माहौल होस्टल जैसा नहीं था. उसे घुटन महसूस होने लगी थी. अकेली सृष्टि ही नहीं, बल्कि दूसरी कई लड़कियों की भी हालत ऐसी ही थी. पर इन की मजबूरी यह थी के ये पैसों की कमी के चलते बाहर कहीं किराए का मकान नहीं ले सकती थीं. दूसरे, आदिवासी जान कर ही लोग इन्हें मकान किराए पर देने के नाम पर नाकभौं सिकोड़ने लगते थे. इन्हें अपनी सुरक्षा का भी डर था. अकेली लड़की देख लोग तरहतरह से तंग करने से बाज नहीं आते.

होस्टल में जुल्म की इंतहा

शुरुआत में सृष्टि होस्टल के माहौल को समझने और उस में ढलने की कोशिश करती रही पर जल्द ही उसे यह समझ आ गया कि होस्टल कहने को तो सरकारी है पर यहां राज सीनियर लड़कियों का चलता है. आदिम जाति कल्याण महकमा और होस्टल वार्डन कहने भर की बातें हैं, होस्टल तो चलाती हैं वे लड़कियां जो सालों से यहां नाजायज तरीके से रह रही हैं और पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद भी उन्हें रोकनेटोकने वाला कोई नहीं कि ‘अब जाओ यहां से.’ होस्टल में दाखिला लेने के कुछ दिनों बाद ही 2 सीनियर्स प्रीति और सीमा शाक्य ने सृष्टि की जम कर लातघूंसों से पिटाई कर डाली. सृष्टि का गुनाह इतना भर था कि उस ने इन दोनों का खाना बनाने से इनकार कर दिया था. हिंदी फिल्मों में जेल में बंद पुराना खूंखार कैदी खुद काम नहीं करता, उस के चमचे उस का सारा काम करते हैं. उस के पैर दबाते हैं, सिर की मालिश करते हैं, खाने की थाली लगा कर लाते हैं और जब उसे शौच के लिए जाना होता है तो बाथरूम खाली करवा देते हैं.

गुलामी का यही नजारा इस होस्टल में था. जूनियर लड़कियां, जो वाकई पढ़ाई को संजीदगी से लेती थीं, इन सीनियर्स के कपड़े धोती थीं, खाना बनाती थीं और झाड़ूपोंछा व सफाई समेत कई ऐसे दूसरे काम करने को मजूबर थीं जो उन का जमीर गवारा नहीं करता था. इस पर भी जुल्म की इंतहा यह कि ये अगर काम करने से मना करें तो पिटाई दोगुनी कर दी जाती थी. सृष्टि पर तो एक दफा कट्टा तक तान दिया गया था.

जब उजागर हुई रंगदारी

सीमा और प्रीति की रंगदारी के बाबत सृष्टि होस्टल वार्डन अनस्तासिया टोपे सहित आदिम जाति कल्याण महकमे और दूसरे आला अफसरों को सौ से भी ज्यादा बार शिकायतें कर चुकी थी पर किसी ने कोई कार्यवाही नहीं की. थकहार कर उस ने पुलिस थाने में भी शिकायत की लेकिन पुलिस ने भी इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं ली. सृष्टि ने इन दोनों की रंगदारी के सामने घुटने न टेकते हुए जून के पहले हफ्ते में राज्य महिला आयोग में शिकायत की. आयोग की अध्यक्ष लता वानखेड़े ने मामले की संजीदगी को समझते हुए होस्टल का निरीक्षण किया तो कई चौंका देने वाली बातें सामने आईं कि सरकारी होस्टल किस तरह ज्यादती के शिकार हैं और इन में सीनियर लड़कियां सालों से गैरकानूनी तरीके से रह रही हैं, जूनियर छात्राओं के साथ दादागीरी करती हैं सो अलग. होस्टल वार्डन से पूछा गया तो उन्होंने भी अपनी बेबसी बयान कर दी कि सीमा और प्रीति उन पर भी रंगदारी करती थीं. कोई अनहोनी न हो, इसलिए वे खामोशी से बरदाश्त करती रहीं.

जाहिर है इस जवाब में दम नहीं था. उस ने हल्ला मचते देख गिरगिट की तरह रंग बदला. इन सीनियर लड़कियों को होस्टल से निकालने की बात की गई तो भी उन्होंने अपनी रंगदारी नहीं छोड़ी. उलटे, सीमा और प्रीति यह कह कर भभका डालती रहीं कि वे लेडी डौन हैं, उन के पापा ने उन्हें इस खिताब से नवाजा है. उन का यह भी कहना था, ‘हम दोस्तों के लिए दोस्त और दुश्मनों के लिए दुश्मन हैं.’ कुछ दिनों पहले ही सीमा पर शराब पी कर हुड़दंग मचाने का भी इलजाम लगा था. लेकिन इलजाम साबित नहीं हुआ था तो वह लड़कियों को और धमकाने लगी थी कि कोई उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. उस के संबंध ऊपर तक हैं.

धांधलियां और बदहालियां

जब हल्ला मचा और महिला आयोग व अनुसूचित जनजाति के अफसर सख्त हुए तो न केवल कमला नेहरू गर्ल्स होस्टल बल्कि दूसरे सरकारी होस्टल्स की बदहालियां भी उजागर हुईं कि हर होस्टल में जरूरत से ज्यादा छात्राएं रह रही हैं और अधिकतर नाजायज तरीके से रह रही हैं. होस्टल में बुनियादी जरूरतों का टोटा है, कई कमरों में पंखे नहीं हैं, खानेपीने के इंतजाम बदतर हैं और साफसफाई नहीं होती. जुलाई के पहले हफ्ते में जब जबरन नाजायज तरीके से रह रही छात्राओं को बाहर का रास्ता दिखाया गया तो जातेजाते भी उन्होंने बहुत हंगामा खड़ा किया.एससी, एसटी के छात्रों के लिए बने होस्टल खस्ताहाल और जेल से क्यों हैं, इस सवाल पर गौर करें तो समझ आता है कि चूंकि ये दलित आदिवासी छात्रों के हैं, इसलिए इन पर कोई ध्यान नहीं देता, लाखों का बजट गोलमाल और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है. दबेकुचले छात्र कहीं शिकायत नहीं कर पाते. उन्हें दाखिला भी मुश्किल से मिलता है, इसलिए हजारों छात्र इधरउधर महंगे किराए के मकानों में रह रहे हैं. उन के मांबाप बच्चों की जिंदगी संवारने के लिए अपना पेट काट कर उन की पढ़ाई और रहने का खर्चा उठा रहे हैं.

इस तरह होस्टलों में भी इन तबकों के छात्र धर्म की तरह की ज्यादती के शिकार हैं. उन का कुसूर छोटी जाति का होना है. सीमा और प्रीति जैसी छात्राएं हर जगह हैं जो होस्टल में लंबे वक्त से रहती हैं, उन्हें अपनी जागीर समझती हैं. जुलाई के पहले हफ्ते  में ही जब छात्राओं का डर कुछ कम हुआ तो उन्होंने कई और चौंका देने वाली बातें बताईं. मसलन, कई सीनियर छात्राएं आधी रात के बाद लौटती हैं और बड़ीबड़ी गाडि़यां इन्हें लेने व छोड़ने आती हैं. जाहिर है उन का इशारा देहव्यापार या शोषण की तरफ था, जो रंगदारी से भी ज्यादा चिंता की बात है. विदिशा से आई एक दलित छात्रा की मानें तो, ‘रंगदारी करने वाली लड़कियों को अफसरों और नेताओं की सरपरस्ती मिली हुई है. ये शराब भी पीती हैं और दूसरे नशे भी करती हैं. उन से मिलने के लिए देर रात तक लड़के आते हैं जिस से हम छात्राओं की पढ़ाई में खलल पड़ता है. पर हम कुछ बोलें तो हमारी मारकुटाई की जाती है.’

सरकारी होस्टलों की हालत सुधरेगी, ऐसा लग नहीं रहा, क्योंकि इन्हें चलाने वाले लोग रसूखदार और पहुंच वाले हैं. वे चुनिंदा सीनियर लड़कियों को पटा कर रखते हैं और एवज में उन्हें छूट व सहूलियतें मुहैया कराते हैं. उन्हें देर रात तक घुमातेफिराते हैं, शौपिंग कराते हैं और जरूरत पड़ने पर पैसा भी देते हैं. इस सब से सीधी और पढ़ाकू लड़कियों का भविष्य बरबाद होता है.

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