‘‘मस्ती’,‘प्यारे मोहन’,‘ग्रैंड मस्ती’, ‘डबल धमाल’,‘टोटल धमाल’,‘ग्रेट ग्रैंड मस्ती’’ जैसी बीस से अधिक वयस्क सेक्स हास्य फिल्मों के लेखक तुषार हीरानंदानी ने जब 16 साल बाद निर्देषन के क्षेत्र में कदम रखा,तो उन्होंने बागपत जिले की दो उम्र दराज शार्प शूटर/ निशानेबाज औरतों चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की सत्य कथा को चुनकर पूरे बौलीवुड को आश्चर्यचकित कर दिया. बहरहाल, अब उनकी यह फिल्म दिवाली के अवसर पर 25 अक्टूबर को रिलीज हो रही है…
प्रस्तुत है उनसे हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश..
आपने फिल्म लेखन से कैरियर की शुरुआत की थी. निर्देशक बनने में 16 साल का वक्त लग गया?
जी हां! जब लेखन की दुकान ठीक ठाक चल रही थी, तो उसे बदलना ठीक नही समझ रहा था. गाड़ी ठीक-ठाक चल रही है, तो बोनट खोल कर रखने की क्या जरूरत? जब तक गाड़ी चलती है, ठीक-ठाक तो चलने दो. खराब होती है, तभी बोनट खोलते हैं. इसी के चलते लेखन से निर्देशन की तरफ मुड़ने में काफी वक्त लग गया. बहरहाल, सच यह है कि मैं लगातार निर्देशक बनने का प्रयास कर रहा था, मैंने कुछ सब्जेक्ट पर काम भी किया था. कलाकारों के चयन पर भी काफी समय लगाया, पर अंततः मुझे ही मजा नही आया, तो आगे बात नहीं बढ़ी. कई बार ऐसा हुआ, जब मैं पीछे हट जाता था. पता नही क्यों लास्ट मूवमेंट में मुझे कहानी में रूचि ही खत्म हो जाती थी. सच कहूं तो मेरे अंदर पेशंस बहुत कम है. फिर भी इस फिल्म में मैंने कहानी में अपना पेशंस खत्म कर दिया. जबकि मैं अपने आप को पीछे कर देता था और फिल्म छोड़ देता. निर्माता सोचते थे कि मैं पागल हूं. यह निर्देशक बनने से रहा, सिर्फ लेखक ही बनकर रहेगा.
शायद लेखक के तौर पर आप एक मोटी रकम कमा रहे थे, इसलिए निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने की रिस्क लेने से बच रहे थे?
जी हां! ऐसे ही होता है. आप ऐसा ही समझ लीजिए. पर इसी के साथ मुझे ऐसी कहानी नही मिल रही थी, जिससे मैं खुद निर्देशक के तौर पर करियर शुरू करूं. जबकि मैं दूसरे निर्देशकों के लिए लगातार कहानी व पटकथा लिख रहा था. मैं आसान कहानी पर फिल्म नही बनाना चाहता था.मुझे ऐसी कहानी की तलाश थी जो कि मुझे इस कदर आकर्षित करे कि मेरा पेशंस भी हार जाए.
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पहली मुलाकात में दोनो दादीयों की किस बात ने आपको प्रभावित किया था?
सबसे पहले मैं और मेरी पत्नी उनसे मिलने गए थे. मैं तो उनकी बातें सुनकर सन्न रह गया था. मैं तो एकाग्र होकर उनके चेहरे को ही देख रहा था. मुझे लग रहा था, जैसे कि मुझे कोई बहुत बड़ा खजाना मिल गया है. जब मैं इनसे मिला, तो यह 82 और 85 वर्ष की थीं. जबकि मैं 40 साल का था. अच्छी खासी जिंदगी जी रहा था. अच्छा कमा रहा था. बहुत पैसे आ रहे थे. मैं अपनी पत्नी से कहा करता था कि पचास साल की उम्र के बाद सब कुछ छोड़कर मोहाली में जाकर रहेंगें. मैने मोहाली में एक ‘आउट हाउस’ भी खरीद रखा है. वैसे भी हम दो प्राणी है. हमारी अपनी कोई संतान नही है. हमारे पास सिर्फ दो कुत्ते हैं. मगर इन दादीयों से मिलकर मैं सोचने पर मजूबर हुआ. मेरे दिमाग में आया कि मैंने पचास साल की उम्र के बाद रिटायर होने की येाजना बनायी है. और इन औरतों ने तो 60 साल की उम्र में नए कैरियर की शुरुआत कर पूरे विश्व को हिलाकर रख दिया. इस बात ने मुझे बहुत एक्साइट किया. इन दादीयों की बातों मेरे दिल को छू लिया. मेरी आंखों से आंसू आ गए. मैं और मेरी पत्नी निधि परमार जब जोहरी गांव जाकर चंद्रो तोमर व प्रकाशी तोमर से मिला,तो उनकी कहानी सुनकर मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े. तब मेरी पत्नी ने मेरे रोने की वजह पूछी, तो मैंने कहा-‘‘यह बहुत ही ग्रेट स्टोरी है. मैं इसे बनाना चाहूंगा.’ तो उसने भी कहा, ‘ठीक हैं, हम बनाते हैं.’ इस तरह यह फिल्म शुरू हुई.
इस कहानी में उम्र का जो पड़ाव है, उसने आपको निर्देशन में कदम रखने के लिए इंस्पायर किया?
जी हां!‘सत्यमेव जयते’ का एपीसोड तो इस उम्र में काम करने वालो पर ही था. इस एपीसोड ने लोगों को प्रेरित किया कि इस उम्र में भी लोगों ने वह काम किया है, जो कि हर किसी के लिए अविश्वसनीय है. सच यही है कि हम बहु जल्द हार मान बैठते हैं. आज कितने लोग ऐसे हैं, जो 50 साल की उम्र में गिव अप कर देते हैं. पर इन्होंने 60 साल की उम्र में काम शुरू किया था. मगर हमारी फिल्म की कहानी 16 साल कही उम्र से अब तक की है.
तो इसमें ओमन इंपावरमेंट भी है?
जी हां!सब कुछ है. इस फिल्म में नारी समानता और ओमन इंम्पावरमेंट का मुद्दा है, मगर उपदेशात्मक नही. हमने फिल्म में कहीं भी उपदेश नहीं झाड़ा. सब कुछ मनोरंजक तरीके से ही बयां किया है. यह पूरी तरह से कमर्शियल फिल्म है.
आपने फिल्म के साथ निर्माता के तौर पर अनुराग कश्यप और रिलायंस इंटरटेनेमंट को कैसे जोड़ा?
बहुत पापड़ बेले. पूरे पांच वर्ष की मेहनत है. जब मैं किसी को यह कहानी सुनाता, तो दो बुढ्ढी औरतों की कहानी की बात सुनकर लोगों की तरफ से अच्छा रिएक्शन नहीं मिलता था. क्योंकि मेरी ईमेज तो ‘मस्ती’ जैसी फिल्म के लेखक की है. पर अनुराग कश्यप ने मुझे प्रोत्साहित किया.मेरे मित्र संजय मासूम ने काफी मदद की. वह इस फिल्म में कहानी सलाहकार भी हैं. फिर मैं पटकथा लेखक बल्ली के साथ जौहरी गांव गया. उसके बाद संवाद लेखक के तौर पर जगदीप संधू को जोड़ा, जो कि कई पंजाबी फिल्मों का लेखन व निर्देशन कर चुके हैं.
ट्रेलर आने के बाद रंगोली चंदेल, नीना गुप्ता व सोनी राजदान के बयान..?
मैं इस बारे में कुछ भी नहीं बोलना चाहता. यह उनकी अपनी राय है. भारत में हर किसी के पास अपनी बात कहने की पूरी स्वतंत्रता है. मैं नकारात्मक बातों पर ध्यान नही देता. डेविड धवन, रोहित शेट्टी, इंद्र कुमार, अनिल कपूर सहित तमाम लोगों ने तारीफ की है, तो मैं तारीफो पर ही ध्यान देना चाहूंगा.मेरा मानना है कि हमें सकारात्मक बातों पर ही ध्यान देना चाहिए.
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भूमि से पहले कई अभिनेत्रियों ने इस फिल्म को करने से मना क्यों किया था?
लोगों को बूढ़ी नही होना था. मेकअप नही करना था. भाषा नहीं सीखनी थी. इसकी ट्रनिंग के लिए वक्त नही देना था. मेरा वर्कशाप ही दो माह चला था. कोई समय नही देना चाहता. सब चाहते हैं कि एक डेढ़ माह में शूटिंग पूरी कर वह दूसरी फिल्म में बिजी हो जाएं.
आपने फिल्म में गाना भी रखा है. क्या चंद्रो या प्रकाशी दादी भी अपनी जिंदगी में कभी गाना गाती थीं?
वह तो बहुत मजेदार हैं. वह तो अभी भी गाने लगती हैं. यह दोनों बहुत बिंदास हैं. उन्हें गीत गाने में एक मिनट नही लगता. वह तो अंग्रेजी में भी बात करती हैं.