मैडिकल काउंसिल औफ इंडिया की सलाह पर सरकार एमबीबीएस और एमडी की प्रवेश परीक्षाओं के लिए सरकारी व निजी सभी कालेजों के लिए एक ही परीक्षा का आयोजन करने पर राजी हो गई है ताकि छात्रों को मल्टीपल ऐग्जाम न देने पड़ें. मैडिकल काउंसिल के अनुसार लगभग 90 परीक्षाएं आजकल हो रही हैं और कई छात्र प्रवेश फीस तो कई प्रवेश परीक्षाओं की भर देते हैं पर तारीख एक होने के कारण उन्हें कई परीक्षाओं को छोड़ना पड़ता है.
इन परीक्षाओं की फीस, तैयारी, कोचिंग, आनेजाने पर होने वाला खर्च बहुत अधिक है और यदि कोई रिसर्च एजेंसी आंके तो शायद यह कई लाख करोड़ रुपए का निकले, जिस में वह हानि शामिल होगी जो छात्रों को परीक्षा की तैयारी करते हुए कमाई न कर पाने के कारण होती है. लाखों मातापिता अपनी गाढ़ी कमाई के लाखों रुपए बच्चों को एक अदद अच्छे मैडिकल कालेज में प्रवेश दिलाने के लिए खर्च कर देते हैं.
लेकिन यह हल असल में हल नहीं है, हल तो तब होगा जब देशभर में 12वीं की परीक्षा के साथ ही इंजीनियरिंग, मैडिकल, फाइन आर्ट्स, बीबीए, पत्रकारिता, सेना, पुलिस, सिविल सर्विसेस की परीक्षाएं ले ली जाएं. इन सब की प्रवेश परीक्षाओं या नौकरियों की परीक्षाओं में बहुत से सवाल एक जैसे होते हैं. 12वीं कक्षा की परीक्षाओं में कई तरह की विविधताएं जोड़ी जा सकती हैं. 5 की जगह 8-9 पेपर देने तक की छूट हो सकती है जो विषय विशेष के लिए हो सकते हैं. जिन नौकरियों में शिक्षा का स्तर 12वीं है, वहां फिर से परीक्षा लेना भी व्यर्थ है.
शिक्षा के नाम पर देश का अरबों रुपया बरबाद किया जा रहा है. हमारी निरंतर बढ़ती गरीबी का एक कारण यह भी है कि हमारे घरों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा निरर्थक कामों में लग रहा है. शायद धर्म से ज्यादा पैसा शिक्षा पर बरबाद हो रहा है. अमीरी पैसा बचाने से आएगी, मंचों पर भाषणों से नहीं, छाती ठोंकने से नहीं. देश को पूंजी भी बचानी चाहिए और लोगों के समय को भी बचाना चाहिए.
गनीमत है कि अति मेधावी छात्रों से मैडिकल की एक परीक्षा ले कर कुछ राहत तो दी जाएगी पर यह आधाअधूरा हल है. अभी बहुत करना बाकी है पर सरकारों के बस में कुछ है, ऐसा लगता नहीं.