पारंपरिक व आधुनिक संस्कृति को अपने में समेटे भौगोलिक विविधताओं से परिपूर्ण पश्चिम बंगाल में जहां प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना है वहीं इतिहास में रुचि रखने वाले पर्यटकों को भी यह बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है.
पश्चिम बंगाल के पर्यटन का नाम लेते ही दार्जिलिंग, सुंदरवन, दीघा का नाम जेहन में आता है. लेकिन उत्तर बंगाल के समतल मैदान से ले कर दक्षिण बंगाल के कई पर्यटन क्षेत्रों के बारे में जान कर आप का मन प्रफुल्लित हो उठेगा. दरअसल, बंगाल के कई जिलों का अपना पर्यटन महत्त्व है. राज्य में जलपाईगुड़ी जिले से हो कर कई पर्यटन स्थलों की सैर की जा सकती है. आइए, उत्तर बंगाल के राष्ट्रीय उद्यान से चर्चा शुरू करते हैं.
गोरूमारा राष्ट्रीय उद्यान: कोलकाता से जलपाईगुड़ी के रास्ते 52 किलोमीटर की दूरी पर गोरूमारा राष्ट्रीय उद्यान स्थित है. यह अपने प्राकृतिक सौंदर्य, मनमोहक दृश्य, घने जंगल और खूबसूरत झरनों के लिए जाना जाता है. ऊपरी हिमालय की पर्वतशृंखलाओं के नीचे समतल का खुला मैदान पर्यटकों को अपनी ओर खूब आकर्षित करता है. इस उद्यान के मुख्य आकर्षण गैंडा, हाथी, गौड़, तेंदुआ आदि वन्य जीव हैं.
जल्दपाड़ा अभयारण्य : भूटान की सीमा के नजदीक बंगाल के उत्तरी जिले जलपाईगुड़ी में 217 वर्ग किलोमीटर तक के क्षेत्र में फैला है जल्दपाड़ा वन्यजीव अभयारण्य. यह जलपाईगुड़ी की तोरसा नदी समेत इस की अन्य सहायक नदियों के करीबी समतल मैदानों के घने जंगलों से घिरा अभयारण्य है. यहां के जंगल में सागौन के पेड़ और एक विशेष प्रकार की घास, जो हाथी घास के नाम से जानी जाती है, बहुतायत में पाई जाती है. अभयारण्य के दलदल में हिरण, तेंदुए, सांबर, काकड़, पाड़ा, जंगली सूअर, जंगली मुरगी, मोर, बटेर, हाथी और बाघ पाए जाते हैं. अभयारण्य में हाथी  की सवारी का लुत्फ भी उठाया जा सकता है.
कासिम बाजार : जलपाईगुड़ी के बाद मुर्शिदाबाद पर्यटन के लिहाज से प्रमुख जिला है. वैसे भी मध्यकाल में मुर्शिदाबाद नवाबों की राजधानी के रूप में जाना जाता था. इस जिले की भागीरथी नदी के तट पर कासिम बाजार का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है. इस की वजह यह है कि अंगरेज फ्रांसीसी, डच समेत यूरोपीय व्यापारियों के बीच इस का महत्त्व रहा है. यूरोपीय व्यापारियों ने यहां अपने कारखाने स्थापित किए थे. भारत के विभिन्न स्थानों पर अपना उपनिवेश बनाने की ताक में रही विदेशी शक्तियों के लिए कासिम बाजार में रहते हुए मुर्शिदाबाद पर नजर रखना आसान हो जाता था.
कासिम बाजार रेशम उत्पादन का वृहद केंद्र रहा है. जाहिर है यहां रेशम उद्योग के लिए कच्चे माल और कुशल बुनकर आसानी से उपलब्ध हो जाते थे. हौलैंड के व्यापारियों ने यहां रेशम का एक कारखाना खोला था, जिस में 700-800 कारीगर काम करते थे.
हजारद्वारी पैलेस : मुर्शिदाबाद जिले का सब से प्रमुख पर्यटक स्थल हजारद्वारी पैलेस है. इसे मीर जाफर के वंशज नजीम हुमायूं शाह ने बनवाया था. इस राजमहल के वास्तुकार डंकन मैकलियोड थे. यह यूरोपीय शैली का स्थापत्य है. जैसा कि इस के नाम से जाहिर है, इस में 1 हजार द्वार हैं. 3 मंजिला यह महल 40 एकड़ से भी अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है. महल के आसपास मनोरम दृश्य पर्यटकों के लिए दर्शनीय हैं. यहां एक बड़ा पुस्तकालय भी है.
हजारद्वारी पैलेस में एक संग्रहालय भी है, जहां 18वीं शताब्दी की दुर्लभ चीजें हैं. शाही घरानों और नवाबों की जीवनशैली से जुड़ी बहुत सारी दर्शनीय चीजें संग्रहालय में हैं. 18वीं शताब्दी के 2,700 से भी अधिक प्रकार के हथियारों के अलावा सुंदर पेंटिंग्स, हाथीदांत से बनी वस्तुएं और कलाकृतियां प्रमुख हैं. पेंटिंग्स में नवाब सिराजुद्दौला समेत उन के पूर्वजों और नवाब अलीवर्दी खान की तलवारें भी संग्रहालय में हैं. संग्रहालय का बड़ा आकर्षण विंटेज कारों का बड़ा कलैक्शन है. बताया जाता है कि इन कारों का इस्तेमाल शाही घराने के सदस्य किया करते थे. इस के अलावा धर्मभीरु पर्यटक मायापुर इस्कौन मंदिर भी जा सकते हैं.
विष्णुपुर टेराकोटा मंदिर: बांकुड़ा जिला अपने टेराकोटा मंदिरों, बालूचरी साडि़यों और पीतल की सजावटी कलाकृतियों के लिए जाना जाता है. कोलकाता से 200 किलोमीटर की दूरी पर मल्ल राजाओं की राजधानी रहा है यह जिला. आधुनिक बांकुड़ा जिला पुराने समय में मल्लभूमि के रूप में भी जाना जाता रहा है. मल्ल राजाओं के वंशजों ने बालूचरी साड़ी और टेराकोटा कला को परवान चढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है. इस जिले के पक्की मिट्टी के बने लाल रंग के मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं.
अगर बालूचरी साड़ी की बात की जाए तो यह विश्व प्रसिद्ध साड़ी है. ऐसी एक साड़ी को तैयार करने में
2 मजदूरों को कम से कम एक हफ्ता या उस से अधिक समय लगता है. काम की बारीकी के हिसाब से इस की कीमत होती है. 1 हजार से 15 हजार रुपए तक की साड़ी यहां मिलती है.
यहां हर साल दिसंबर के आखिरी सप्ताह में एक मेला लगता है, जो विष्णुपुर मेला के रूप में जाना जाता है. यह मेला कला और संस्कृति के अनोखे संगम के रूप में विश्वप्रसिद्ध है. मेले में देशीविदेशी पर्यटकों के अलावा दूरदूर से अपने हुनर के प्रदर्शन के लिए कलाकार और कला के पारखी आते हैं.
मुकुटमणिपुर
बांकुड़ा जिले का दूसरा प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है मुकुटमणिपुर. यह बांकुड़ा से 55 किलोमीटर दूर है. यह दरअसल एक बांध है. हरेभरे जंगल और पानी की विशाल धारा के साथ प्राकृतिक सौंदर्य के लिए यह बहुत मशहूर है. यहां के विशाल जलाशय के पानी में आसमान का प्रतिबिंब इस जगह की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है. पर्यटक यहां पहाड़ी पर ट्रैकिंग का भी मजा ले सकते हैं. यहां की सब से ऊंची पहाड़ी बिहारीनाथ के नाम से जानी जाती है. यह पहाड़ी पर्यटन के लिए मशहूर है. यहां का नैसर्गिक वातावरण पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है.
यहां पिरामिड की शक्ल में ईंटों से बना एक बहुत पुराना मंदिर है, जो रासमंच के नाम से जाना जाता है. यह भी टेराकोटा शैली का मंदिर है.
16वीं सदी में मल्ल राजा हंबीरा ने रास उत्सव के इस मंदिर का निर्माण विशेष रूप से कराया था. इस के अलावा 17वीं सदी में जोरबंगला नामक एक और टेराकोटा मंदिर है. दरअसल, पुराने बांकुड़ा जिले में टेराकोटा के कई मंदिर हैं और इसीलिए इसे मंदिरों का शहर भी कहा जाता है.
सुंदरवन
दुनिया के सब से बड़े डेल्टा के रूप में जाना जाता है सुंदरवन. पूरा सुंदरवन न केवल बंगाल के 2 जिलों उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना में, बल्कि बंगलादेश तक फैला हुआ है. सुंदरवन के भारतीय इलाकों में लगभग 54 द्वीप हैं, जो इस क्षेत्र का केवल 40 प्रतिशत है, शेष 60 प्रतिशत बंगलादेश के अंतर्गत आता है. यहां अकसर समुद्री चक्रवाती तूफान आते हैं. विशेष रूप से मार्च महीने से चक्रवाती तूफान का आना शुरू होता है. चक्रवाती तूफानों की वजह से गरमी के दिनों में यहां पर्यटकों को आने की अनुमति नहीं दी जाती है. यहां पर्यटन के लिए सब से अच्छा समय सितंबर से फरवरी तक का माना जाता है.
सुंदरवन रौयल बंगाल टाइगर, मैनग्रोव के जंगल और यहां पाए जाने वाले विशेष तरह के सुंदरी नामक पेड़ के लिए जाना जाता है. यहां के मैनग्रोव 10-12 फुट ऊंचे होते हैं और रौयल बंगाल टाइगर का यही निवासस्थल है. दरअसल, मैनग्रोव की पत्तियां पीलीहरीचितकबरी होती हैं और इसी की वजह से बाघ इन पत्तियों के बीच आसानी से छिप जाते हैं. इस के अलावा सुंदरवन लाल केंकड़े, कछुए, मगरमच्छ, हिरन, रंगबिरंगे पक्षियों, शिकारी बिल्लियों, प्रवासी पक्षियों तथा विभिन्न प्रजाति के विषैले सांपों व शहद के लिए भी जाना
जाता है.
कोलकाता से यहां पहुंचने के लिए नियमित बस सेवाएं हैं. कैनिंग ‘गेटवे औफ सुंदरवन’ कहलाता है. सड़क के रास्ते 6 जगहों-- कैनिंग, सोनाखाली, नामखाना, रायदीघी, जामतला और थामाखाली हो कर पहुंचा जा सकता है. कैनिंग तक पहुंचने के लिए सियालदह से टे्रन उपलब्ध है.
दीघा
कोलकाता से 187 किलोमीटर की दूरी पर दीघा नाम का समुद्रतट है. धर्मतल्ला और उल्टाडांगा से बसें जाती हैं. आजकल टे्रन भी उपलब्ध है. हावड़ा से ट्रेन के जरिए महज 2 घंटे में दीघा पहुंचा जा सकता है. नवंबर से मार्च तक का समय दीघा पर्यटन के अनुकूल होता है. पहले यह बारीकूल के नाम से जाना जाता था लेकिन अब दीघा के नाम से विश्वप्रसिद्ध है.
दीघा के करीब न्यू दीघा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है. यहां समुद्र तट के अलावा झील और पार्क हैं. झील में बोटिंग का मजा लिया जा सकता है. यहां पैडल बोट से ले कर मोटर बोट तक उपलब्ध हैं. दीघा से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर शंकरपुर नाम का एक और पर्यटन स्थल है. इसे फिशिंग प्रोजैक्ट के लिए जाना जाता है.
यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों का नजारा मनमोहक होता है. दीघा के समुद्र तट के किनारेकिनारे चल कर ओडिशा तक पहुंचा जा सकता है. यहां के लाल केंकड़े विश्वप्रसिद्ध हैं. इन केकड़ों के दर्शन पर्यटकों के लिए बहुत ही खुशी की बात है क्योंकि पर्यटन के मौसम में ये केंकड़े कम ही दिखाई देते हैं.
दार्जिलिंग
पहाड़ों की सैर के लिए दार्जिलिंग अच्छा विकल्प है. बंगाल का पहाड़ी इलाका दार्जिलिंग कभी सिक्किम का हिस्सा हुआ करता था.
दार्जिलिंग अपनी चाय और टौय ट्रेन के लिए सब से अधिक जाना जाता है. यहां की चाय दुनिया की सब से बढि़या चाय में शुमार की जाती है. यहां की उम्दा चाय 3 हजार रुपए प्रति किलोग्राम तक बिकती है. टौय ट्रेन का स्थानीय नाम हिमालयन रेलवे है. 1878 में इस की स्थापना हुई. मुख्य शहर दार्जिलिंग से 80 किलोमीटर दूर घूम कर टौय ट्रेन की सवारी की जा सकती है. यहां की टौय ट्रेन विश्व विरासत का हिस्सा बन चुकी है.
दार्जिलिंग से बौद्धों के मठ और पहाड़ों के खूबसूरत नजारे नजर आते हैं. दार्जिलिंग में एक टाइगर हिल है. वहां से सुबहसुबह विश्व की सब से ऊंची चोटी एवरेस्ट और विश्व की तीसरी सब से ऊंची चोटी कंचनजंगा का नजारा देखने के लिए खासी भीड़ उमड़ती है.
मठों के लिए प्रसिद्ध दार्जिलिंग का सब से प्रसिद्ध मठ घूम मठ है. यह टाइगर हिल के करीब है. इस मठ में बुद्ध की 15 फुट की प्रतिमा है. कीमती पत्थर से बनी मूर्ति में सोने की परत चढ़ी है. यहां से थोड़ी दूर पर एक और मठ है, जिसे जेलूग्पा के नाम से जाना जाता है. दार्जिलिंग औब्जर्वेटरी हिल के पास भूटिया बस्ती मठ है.
कहते हैं, इस मठ में 1815 में नेपालियों ने लूटपाट की थी. 1879 में इस मठ को फिर से बनाया गया, जो नेपालीतिब्बती शैली का है. इस के अलावा माकडोग मठ, दू्रकचन चोलिंग मठ और शाक्या मठ भी हैं. माकडोग मठ का निर्माण 1914 में हुआ था. यह योलमोवा संप्रदाय का है. ये लोग नेपाल से यहां आ कर बस गए थे. दू्रकचन चोलिंग मठ तिब्बती शैली का मठ है. शाक्या मठ शाक्य संप्रदाय का है.
जापानी पैगोडा का निर्माण 1972 में शुरू किया गया, जिसे 1992 में आम लोगों के लिए खोल दिया गया. यहां लाल पांडा और स्नो लैपर्ड के लिए कृत्रिम प्रजनन केंद्र है, जो पद्मजा नायडू हिमालयन जैविक उद्यान के नाम से जाना जाता है. इस उद्यान में 50 से भी अधिक प्रजाति के और्किड का एक संग्रहालय है. यहां से करीब ही नैचुरल
हिस्ट्री म्यूजियम भी है जहां विभिन्न प्रकार के पक्षियों, सरीसृपों, कीटपतंगों को संरक्षित रखा गया है.
दार्जिलिंग का पर्वतारोहण संग्रहालय भी दर्शनीय है. यहां एवरेस्ट के तमाम ऐतिहासिक अभियानों से जुड़ी वस्तुओं को रखा गया है. 1953 में एवरेस्ट पर पहली बार भारत का झंडा फहराने वाले शेरपा तेनजिंग के अभियान से संबंधित वस्तुएं देखी जा सकती हैं.
संग्रहालय के अलावा यहां पर्वतारोहण का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. इन के अलावा दार्जिलिंग के अन्य पर्यटक स्थल हैं : गंबू चट्टान, गंगामाया पार्क, रौक गार्डन, श्रवरी पार्क और राज भवन. दार्जिलिंग से मानेभंज्जयांग हो कर संदाकफू की यात्रा पर्यटकों के लिए एक बहुत अच्छा अनुभव है. पैदल यात्रा से ही उन का लुत्फ उठाया जा सकता है.

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