भारत की हृदयस्थली कहे जाने वाले मध्य प्रदेश में शेरों की दहाड़ से ले कर पत्थरों में उकेरी गई प्रेम की मूर्तियों का सौंदर्य वहां जाने वाले के मन में ऐसी यादें छोड़ जाता है कि दोबारा जाने के लिए उस का मन ललचाता रहता है.
बांधवगढ़ नैशनल पार्क में टाइगर देखने से ले कर ओरछा के महलों व खजुराहो के मंदिरों की मूर्तियों में आप वास्तविक भारत को खोज सकते  हैं. इस राज्य का इतिहास, भौगोलिक स्थिति, प्राकृतिक सुंदरता, सांस्कृतिक विरासत और यहां के लोग इसे भारत के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन स्थलों में से एक बनाते हैं. यहां आने वाले सैलानियों के लिए प्रदेश का टूरिज्म विभाग विशेष तौर पर मुस्तैद रहता है ताकि पर्यटकों को किसी तरह की असुविधा न हो. इस बार मध्य प्रदेश को नैशनल टूरिज्म अवार्ड से सम्मानित किया गया है. मध्य प्रदेश के पर्यटन राज्यमंत्री सुरेंद्र पटवा को दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में केंद्रीय मंत्री शशि थरूर ने सर्वोत्तम पर्यटन प्रदेश का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया.   
दर्शनीय स्थल
मांडू 
खंडहरों के पत्थर यहां के इतिहास की कहानी बयां करते हैं. यहां के हरियाली से भरे बाग, प्राचीन दरवाजे, घुमावदार रास्ते बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं.
रानी रूपमती का महल एक पहाड़ी की चोटी पर बना हुआ है जो स्थापत्य का एक बेहतरीन नमूना है. यहां से नीचे स्थित बाजबहादुर के महल का दृश्य बड़ा ही विहंगम दिखता है, जोकि अफगानी वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है. मांडू विंध्य की पहाडि़यों पर 2 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है. यहां के दर्शनीय स्थलों में जहाज महल, हिंडोला महल, शाही हमाम और नक्काशीदार गुंबद वास्तुकला के उत्कृष्टतम रूप हैं.
नीलकंठ महल की दीवारों पर अकबरकालीन कला की नक्काशी भी काबिलेतारीफ है. अन्य स्थलों में हाथी महल, दरियाखान की मजार, दाई का महल, दाई की छोटी बहन का महल, मलिक मुगीथ की मसजिद और जाली महल भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.
धार से 33 और इंदौर से 99 किलोमीटर दूर स्थित मांडवगढ़ (मांडू) पहुंचने के लिए इंदौर व रतलाम नजदीकी रेलवे स्टेशन हैं. बसों से भी मांडू जाया जा सकता है. नजदीकी एअरपोर्ट (99 किलोमीटर) इंदौर है.
ओरछा 
16वीं व 17वीं शताब्दी में बुंदेला राजाओं द्वारा बनवाई गई ओरछा नगरी के महल और इमारतें आज भी अपनी गरिमा बनाए हुए हैं. स्थापत्य का मुख्य विकास राजा बीर सिंहजी देव के काल में हुआ. उन्होंने मुगल बादशाह जहांगीर की स्तुति में जहांगीर महल बनवाया जो खूबसूरत छतरियों से घिरा है. महीन पत्थरों की जालियों का काम इस महल को एक अलग पहचान देता है.
इस के अतिरिक्त राय प्रवीन महल देखने योग्य है. ईंटों से बनी यह दोमंजिली इमारत है. इस महल की भीतरी दीवारों पर चित्रकला की बुंदेली शैली के चित्र मिलते हैं. राजमहल और लक्ष्मीनारायण मंदिर व चतुर्भुज मंदिर की सज्जा भी बड़ी कलात्मक है. फूल बाग, शहीद स्मारक, सावन भादों स्तंभ, बेतवा के किनारे बनी हुई 14 भव्य छतरियां भी देखने योग्य स्थल हैं. 
यह ग्वालियर से 119 किलोमीटर और खजुराहो से 170 किलोमीटर की दूरी पर है. यहां छोटा रेलवे स्टेशन है.
सांची
भारत में बौद्धकला की विशिष्टता व भव्यता सदियों से दुनिया को सम्मोहित करती आई है. सांची के स्तूप विश्व विरासत में शुमार हैं. स्तूप, प्रतिमाएं, मंदिर, स्तंभ, स्मारक, मठ, गुफाएं, शिलाएं व प्राचीन दौर की उन्नत प्रस्तर कला की अन्य विरासतें अपने में समाए हुए सांची को वर्ष 1989 में यूनैस्को की विश्व विरासत सूची में शमिल किया गया है. बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र होने के कारण यहां
देशी व विदेशी पर्यटक प्रतिदिन हजारों की संख्या में पहुंचते हैं. 
सांची में सुपरफास्ट रेलें नहीं रुकतीं, इसलिए भोपाल आ कर यहां आना उपयुक्त रहता है. सांची देश के लगभग सभी नगरों से सड़क व रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है.
खजुराहो
खजुराहो के मंदिर पूरे विश्व में आकर्षण का केंद्र हैं. पर्यटक यहां स्थापित भारतीय कला के अद्भुत संगम को देख कर दांतों तले उंगली दबाने से अपने को नहीं रोक पाते. मंदिरों की दीवारों पर उकेरी गई  विभिन्न मुद्राओं की प्रतिमाएं भारतीय कला का अद्वितीय नमूना प्रदर्शित करती हैं. यहां काममुद्रा में मग्न मूर्तियों के सौंदर्य को देख कर  खजुराहो को प्यार का प्रतीक पर्यटन स्थल कहना भी अनुचित नहीं होगा. काममुद्रा के साक्षी इन मंदिरों में प्रतिवर्ष असंख्य जोड़े अपनी हनीमून यात्रा पर यहां आते हैं.
किसी समय इस क्षेत्र में खजूर के पेड़ों की भरमार थी. इसलिए इस स्थान का नाम खजुराहो हुआ. मध्यकाल में ये मंदिर भारतीय वास्तुकला के प्रमुख केंद्र माने जाते थे. वास्तव में यहां 85 मंदिरों का निर्माण किया गया था, किंतु वर्तमान में 22 ही शेष रह
गए हैं. 
मंदिरों को 3 भागों में बनाया गया है. यहां का सब से विशाल मंदिर कंदरिया महादेव मंदिर है. उसी के पास ग्रेनाइट पत्थरों से बना हुआ चौंसठ योगनी मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, घंटाई मंदिर, आदिनाथ और दूल्हादेव मंदिर प्रमुख हैं. मंदिरों की प्रतिमाएं मानव जीवन से जुड़े सभी भावों आनंद, उमंग, वासना, दुख, नृत्य, संगीत और उन की मुद्राओं को दर्शाती हैं. ये शिल्पकला का जीवंत उदाहरण हैं. 
शिल्पियों ने कठोर पत्थरों में भी ऐसी मांसलता और सौंदर्य उभारा है कि देखने वालों की नजरें उन प्रतिमाओं पर टिक जाती हैं. ये कला, सौंदर्य और वासना के सुंदर व कोमल पक्ष को दर्शाती हैं. खजुराहो तो अद्वितीय है ही, इस के आसपास भी अनेक दर्शनीय स्थान हैं जो आप की यात्रा को पूर्णता प्रदान करते हैं. इन में राजगढ़ पैलेस, गंगऊ डैम, पन्ना राष्ट्रीय उद्यान एवं हीरे की खदानें आदि हैं. 
खजुराहो के लिए दिल्ली व वाराणसी से नियमित फ्लाइट उपलब्ध हैं व खजुराहो रेलवे स्टेशन सभी प्रमुख रेल मार्गों से जुड़ा है.
पचमढ़ी
प्राकृतिक सौंदर्य के कारण सतपुड़ा की रानी के नाम से पहचाने जाने वाले पर्यटन स्थल पचमढ़ी की खोज 1857 में की गई थी. यकीन मानिए, आप मध्य प्रदेश के एकमात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल पचमढ़ी जाएंगे तो प्रकृति का भरपूर आनंद उठाने के साथसाथ  तरोताजा भी हो जाएंगे.  सतपुड़ा के घने जंगलों का सौंदर्य यहां चारों ओर बिखरा हुआ है. यहां का वाटर फौल, जिसे जमुना प्रपात कहते हैं, पचमढ़ी को जलापूर्ति करता है. 
सुरक्षित पिकनिक स्पौट के रूप में विकसित अप्सरा विहार का जलप्रपात देखते ही बनता है. प्रियदर्शनी, अप्सरा विहार, रजत प्रपात, राजगिरि, डचेस फौल, जटाशंकर, हांडी खोह, धूपगढ़ की चोटी और पांडव गुफाएं यहां के प्रमुख स्थल हैं. यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन पिपरिया है. यहां भोपाल और पिपरिया से सड़क मार्ग द्वारा भी जाया जा सकता है. निकटतम हवाई अड्डा  भोपाल 210 किलोमीटर की दूरी पर है.
बांधवगढ़़
राजशाहों का पसंदीदा शिकारगाह रहा है बांधवगढ़. प्रमुख आकर्षण जंगली जीवन, बांधवगढ़ नैशनल पार्क में शेर से ले कर चीतल, नीलगाय, चिंकारा, बारहसिंगा, भौंकने वाले हिरण, सांभर, जंगली बिल्ली, भैंसे से ले कर 22 प्रजातियों के स्तनपायी जीव और 250 प्रजातियों के पक्षियों के रैन बसेरे हैं. 
448 स्क्वायर किलोमीटर में फैला बांधवगढ़ भारत के नैशनल पार्कों में अपना प्रमुख स्थान रखता है. यहां पहाड़ों पर 2 हजार साल पुराना बना किला भी देखने लायक है. बांधवगढ़ प्रदेश के रीवा जिले में स्थित है. यहां आवागमन के सभी साधन देश भर से उपलब्ध हैं. 
नजदीकी हवाई अड्डा जबलपुर में है. यह रेल मार्ग से भी जबलपुर, कटनी, सतना से जुड़ा हुआ है.
कान्हा किसली
940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विकसित कान्हा टाइगर रिजर्व राष्ट्रीय उद्यान है. इसे देखने के लिए किराए पर जीप मिल जाती है. कान्हा में वन्यप्राणियों की 22 प्रजातियों के अलावा 200 पक्षियों की प्रजातियां हैं. यहां बामनी दादर एक सनसैट पौइंट है. यहां से सांभर, हिरण, लोमड़ी और चिंकारा जैसे वन्यप्राणियों को आसानी से देखा जा सकता है.  जबलपुर, बिलासपुर और बालाघाट से सड़क मार्ग से कान्हा पहुंचा जा सकता है. नजदीकी विमानतल जबलपुर में है.

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