विविध वन्यजीव और प्राकृतिक सौंदर्य के आंचल में बसे उत्तराखंड की बात ही निराली है. यहां खूबसूरत वादियों में सैलानियों को रोमांचक अनुभव के साथसाथ विविध संस्कृति का संगम भी मिलता है तो फिर क्यों न निहारा जाए यहां की खूबसूरती को.
उत्तराखंड में घूमने लायक बहुत जगहें हैं. जो वाइल्डलाइफ पर्यटन का शौक रखते हैं वे यहां के जिम कौर्बेट नैशनल पार्क का दीदार कर सकते हैं. नैनीताल जिले में स्थित यह पार्क 1,318 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इस के 821 वर्ग किलोमीटर में बाघ संरक्षण का काम होता है. दिल्ली से यह पार्क 290 किलोमीटर दूर है.  मुरादाबाद से काशीपुर और रामनगर होते हुए यहां तक पहुंचा जा सकता है. यहां पर तमाम तरह के पशु मिलते हैं. इन में शेर, भालू, हाथी, हिरन, चीतल, नीलगाय और चीता प्रमुख हैं.
यहां 200 लोगों के ठहरने की व्यवस्था है. यहां अतिथि गृह, केबिन और टैंट उपलब्ध हैं. रामनगर रेलवे स्टेशन से 12 किलोमीटर की दूरी पर पार्क का गेट है. रामनगर रेलवे स्टेशन से पार्क के लिए छोटीबड़ी हर तरह की गाडि़यां मिलती हैं. यहां कई तरह के रिजोर्ट हैं. यहां से जिप्सी के जरिए पार्क में घूमने की व्यवस्था रहती है.
यहां हाथी भी बहुत उपलब्ध हैं. जो जंगल के बीच ऊंचाई तक सैर कराने ले जाते हैं. हाईवे पर ही हाथी स्टैंड बने हैं. हाथी की सैर चाहे महंगी हो पर यह पर्यटन का मजा दोगुना कर देती है.
सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे के बीच नेचर वाक का आयोजन किया जाता है. जिम कौर्बेट नैशनल पार्क के अलावा उत्तराखंड में कई खूबसूरत स्थल हैं जिन का मजा पर्यटकों को लेना चाहिए.
कौर्बेट पार्क और रामनगर के रास्ते में नदी के किनारे बने रिजोर्ट महंगे हैं पर लगभग हर रिजोर्ट से नदी का और सामने पेड़ों से ढकी पहाडि़यों के सुरम्य दर्शन होते हैं. इन रिजोर्टों में नम: रिजोर्ट बहुत आधुनिक है पर काफी महंगा है. कौर्बेट पार्क के पास नदी के बीच एक चट्टान पर एक मंदिर भी है. जहां आप चढ़ावे के लिए या पाखंड के लिए न जाएं पर वहां नदी किनारे बैठ कर सुस्ताने जरूर जाएं. यह इलाका बहुत शांत और प्रदूषण रहित है.  यहां बने छोटे बाजार में छोटीमोटी आकर्षक चीजें मिलती हैं.
नैनीताल   
उत्तराखंड प्रदेश की सब से अच्छी घूमने वाली जगह है नैनीताल. इस की खासीयत यहां के ताल हैं. यहां पर कम खर्च में हिल टूरिज्म का भरपूर मजा लिया जा सकता है. काठगोदाम, हल्द्वानी और लालकुआं नैनीताल के करीबी रेलवे स्टेशन हैं जहां से पर्यटक बस या टैक्सी के द्वारा आसानी से नैनीताल पहुंच सकते हैं. हनीमून कपल की यह सब से पसंदीदा जगह है. नैनीताल को अंगरेजों ने हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया था. यहां की इमारतों को देख कर अंगरेजी काल की वास्तुकला दिखाई देती है.  नैनीताल शहर के बीचोबीच एक झील है, इस को नैनी झील कहते हैं. इस झील की बनावट आंखों की तरह की है. इसी कारण इस को नैनी और शहर को नैनीताल कहा जाता है.
काठगोदाम नैनीताल का सब से करीबी रेलवे स्टेशन है. इस को कुमाऊं का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है. गौला नदी इस के दाएं ओर से हो कर हल्द्वानी की ओर बहती है. हल्द्वानी व काठगोदाम से नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत और पिथौरागढ़ के लिए बसें चलती हैं. काठगोदाम से नैनीताल के लिए जब आगे बढ़ते हैं तो ज्योलिकोट में चीड़ के घने वन दिखाई पड़ते हैं. यहां से कुछ दूरी पर कौसानी, रानीखेत और जिम कौर्बेट नैशनल पार्क भी पड़ता है.
भीमताल नैनीताल का सब से बड़ा ताल है. इस की लंबाई 448 मीटर और चौड़ाई 175 मीटर है. भीमताल की गहराई 15 से 50 मीटर तक है. भीमताल के 2 कोने हैं. इन को तल्ली ताल और मल्ली ताल के नाम से जाना जाता है. ये दोनों कोने सड़क से जुडे़ हैं. नैनीताल से भीमताल की दूरी 22.5 किलोमीटर है.  भीमताल से 3 किलोमीटर दूर उत्तरपूर्व की ओर 9 कोनों वाला ताल है जो नौ कुचियाताल कहलाता है. सातताल कुमाऊं इलाके का सब से खूबसूरत ताल है. इतना सुंदर कोई दूसरा ताल नहीं है. इस ताल तक पहुंचने के लिए भीमताल से हो कर रास्ता जाता है. भीमताल से इस की दूरी 4 किलोमीटर है.
नैनीताल से यह 21 किलोमीटर दूर स्थित है.  साततालों में नलदमयंती ताल सब से अलग है. इस का आकार समकोण वाला है.  नैनीताल से 6 किलोमीटर दूर खुर्पाताल है. इस ताल का गहरा पानी इस की सब से बड़ी सुंदरता है. यहां पर पानी के अंदर छोटीछोटी मछलियों को तैरते हुए देखा जा सकता है. इन को रूमाल के सहारे पकड़ा भी जा सकता है.
रोपवे नैनीताल का सब से प्रमुख आकर्षण है. यह स्नोव्यू पौइंट और नैनीताल को जोड़ता है. यह मल्लीताल से शुरू होता है. यहां पर 2 ट्रोलियां हैं जो सवारियों को ले कर एक तरफ से दूसरी तरफ जाती हैं.   रोपवे से पूरे नैनीताल की खूबसूरती को देखा जा सकता है. मालरोड यहां का सब से आधुनिक बाजार है. यहीं पास में नैनी झील है. यहां पर बोटिंग का मजा लिया जा सकता है. मालरोड पर बहुत सारे होटल, रेस्तरां, दुकानें और बैंक हैं. यह रोड मल्लीताल और तल्लीताल को जोड़ने का काम भी करता है. यहां भीड़भाड़ और शांत दोनों तरह की जगहें हैं. नैनीताल में ही टैक्सी स्टैंड के पास 5 केव बनी हैं. इन के अंदर घुसने में रोमांचक अनुभव किया जा सकता है. यह जगह बहुत ठंडी और एकांत वाली है. हनीमून कपल को ऐसी जगहें खासतौर पर लुभाती हैं.
रानीखेत 
अगर आप पहाड़, सुंदर घाटियां, चीड़ व देवदार के ऊंचेऊंचे पेड़, संकरे रास्ते और पक्षियों का कलरव सुनना चाहते हैं तो आप के लिए रानीखेत से बेहतर कोई दूसरी जगह नहीं हो सकती. यहां शहर के कोलाहल से दूर ग्रामीण परिवेश का अद्भुत सौंदर्य देखने को मिलेगा.
25 वर्ग किलोमीटर में फैले रानीखेत को फूलों की घाटी कहा जाता है. यहां से दिखने वाले पहाड़ों पर सुबह, दोपहर और शाम का अलगअलग रंग साफ दिखता है. इस इलाके में छोटेछोटे खेत हुआ करते थे, इसी कारण इस का नाम रानीखेत पड़ गया. इस शहर का बाजार पहाड़ों की उतार पर बसा है इसी कारण इस को खड़ा बाजार भी कहा जाता है. रानीखेत घूमने के लिए सब से बेहतर समय अप्रैल से सितंबर मध्य तक रहता है. यहां का सब से करीबी हवाईअड्डा पंतनगर है. यहां से 119 किलोमीटर टैक्सी से सफर कर रानीखेत पहुंचना होगा. रेलगाड़ी से पहुंचने के लिए काठगोदाम सब से करीबी रेलवे स्टेशन है. यहां से रानीखेत 84 किलोमीटर दूर है. यहां से बस और टैक्सी दोनों की सुविधाएं उपलब्ध हैं.
रानीखेत में देखने वाली तमाम जगहें हैं. इन में सब से प्रसिद्ध उपत नामक जगह है. यह रानीखेत शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर अल्मोड़ा जाने वाले रास्ते में है. चीड़ के घने जंगल के बीच यहां दुनिया का सब से मशहूर गोल्फ मैदान भी है. यहां कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है. कोमल हरी घास वाला यह मैदान 9 छेदों वाला है. ऐसा मैदान बहुत कम देखने को मिलता है. यहां खिलाडि़यों के रहने के लिए सुंदर बंगला भी बना है. रानीखेत शहर से
6 किलोमीटर दूर स्थित चिलियानौला नामक जगह है. घूमने और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह एक अच्छी जगह है. यहां फूलों के सुंदर बाग हैं जिन की सुंदरता देखते ही बनती है.
रानीखेत से 10 किलोमीटर दूर चौबटिया जगह है. यहां फलों का सब से बड़ा बगीचा है. यहां आसपास पानी के 3 झरने हैं जो देखने वालों को बहुत लुभाते हैं. रानीखेत से 35 किलोमीटर दूर शीतलखेत है. यहां से बर्फ से ढकी पहाडि़यां देखने में बहुत अच्छा महसूस होता है. ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से पूरा रानीखेत दिखता है. रानीखेत से
40 किलोमीटर दूर द्वाराहाट है. ऐतिहासिक खासीयत वाली जगहों को देखने के लिए लोग यहां आते हैं.
पर्वतों की रानी मसूरी
देहरादून जाने वाला हर पर्यटक मसूरी जरूर जाना पसंद करता है. मसूरी दुनिया की उन जगहों में गिनी जाती है जहां पर लोग बारबार जाना चाहते हैं. इसे पर्वतों की रानी भी कहा
जाता है. यह  देहरादून से 35 किलोमीटर दूर स्थित है. देहरादून तक आने के लिए देश के हर हिस्से से रेल, बस और हवाई जहाज की सुविधा उपलब्ध है. इस के उत्तर में बर्फ से ढके पर्वत दिखते हैं और दक्षिण में खूबसूरत दून घाटी दिखती है. इस सौंदर्य के कारण देखने वालों को मसूरी परी महल सी प्रतीत होती है. यहां पर देखने और घूमने वाली बहुत सारी जगहें हैं.
मुख्य आकर्षण 
मसूरी के करीब दूसरी ऊंची चोटी पर जाने के लिए रोपवे का मजा घूमने वाले लेते हैं.  यहां पैदल रास्ते से भी पहुंचा जा सकता है. यह रास्ता माल रोड पर कचहरी के निकट से जाता है. यहां पहुंचने में लगभग 20 मिनट का समय लगता है. रोपवे की लंबाई केवल 400 मीटर है. गन हिल से हिमालय पर्वत शृंखला बंदरपच, पिठवाड़ा और गंगोत्तरी को देखा जा सकता है. मसूरी और दून घाटी के सुंदर दृश्यों को यहां से देखा जा सकता है. आजादी से पहले इस पहाड़ी के ऊपर रखी तोप प्रतिदिन दोपहर में चलाई जाती थी. इस से लोग अपनी घडि़यों में समय मिलाते थे.
मसूरी का कंपनी गार्डन सुंदर उद्यान है. चाइल्डर्स लौज लाल टिब्बा के निकट स्थित मसूरी की सब से ऊंची चोटी है. मसूरी के पर्यटन कार्यालय से यह केवल 5 किलोमीटर दूर है. यहां तक घोडे़ पर या पैदल पहुंचा जा सकता है. यहां से बर्फ के दृश्य देखना बहुत रोमांचक लगता है.
झड़ीपानी फौल मसूरी से 8 किलोमीटर दूर स्थित है. घूमने वाले यहां तक 7 किलोमीटर तक की दूरी बस या कार से तय कर सकते हैं. इस के बाद पैदल 1 किलोमीटर चल कर झरने तक पहुंच सकते हैं. मसूरी से 7 किलोमीटर दूर मसूरी देहरादून रोड पर भट्टा फौल स्थित है. यमुनोत्तरी रोड पर मसूरी से 15 किलोमीटर दूर 4500 फुट की ऊंचाई पर स्थित कैंपटी फौल मसूरी की सब से सुंदर जगह है. कैंपटी फौल मसूरी का सब से बड़ा और खूबसूरत झरना है. यह चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. मसूरीयमुनोत्तरी मार्ग पर लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित यह झरना 5 अलगअलग धाराओं में बहता है. यह पर्यटकों की सब से पसंदीदा जगह है.
मसूरीदेहरादून रोड पर मूसरी झील के नाम से नया पर्यटन स्थल बनाया गया है. यह मसूरी से 6 किलोमीटर दूर है. यहां पर पैडल बोट से झील में घूमने का आनंद लिया जा सकता है. यहां से घाटी के सुंदर गांवों को भी देखा जा सकता है. टिहरी बाईपास रोड पर लगभग 2 किलोमीटर दूर एक नया पिकनिक स्पौट बनाया गया है. इस के आसपास पार्क बने हैं. यह जगह देवदार के जंगलों और फूल की झाडि़यों से घिरी है. यहां तक पैदल या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है. इस पार्क में वन्यजीव, जैसे घुरार, कंणकर, हिमालयी मोर और मोनल आदि पाए जाते हैं.
मसूरी से 27 किलोमीटर चकराताबारकोट रोड पर यमुना ब्रिज है. यह फिशिंग के लिए सब से अच्छी जगह है. यहां परमिट ले कर फिश्ंिग की जा सकती है. मसूरी से लगभग 25 किलोमीटर दूर मसूरीटिहरी रोड पर धनोल्टी स्थित है. इस मार्ग में चीड़ और देवदार के जंगलों के बीच बुरानखांडा का शानदार दृश्य देखा जा सकता है. वीकएंड मनाने के लिए बहुत सारे परिवार धनोल्टी आते हैं. यहां रुकने के लिए टूरिस्ट बंगले भी उपलब्ध हैं.
धनोल्टी से लगभग 31 किलोेमीटर दूर चंबा जगह है. इस को टिहरी भी कहते हैं. यहां पहुंचने के लिए लोगों को जिस सड़क से हो कर गुजरना पड़ता है वह फलों के बागानों से घिरी है. सीजन के दौरान पूरे मार्ग पर सेब बहुत मिलते हैं. बसंत के मौसम में फलों से लदे वृक्ष देखते ही बनते हैं. इन को देखना आंखों को बहुत सुखद लगता है.
देहरादून        
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून शिवालिक पहाडि़यों में बसा एक बहुत खूबसूरत शहर है. घाटी में बसे होने के कारण इस को दून घाटी भी कहा जाता है. देहरादून में दिन का तापमान मैदानी इलाके सा होता है पर शाम ढलते ही यहां का तापमान बदल कर पहाड़ों जैसा हो जाता है. देहरादून के तापमान में पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाकों का मजा मिलता है.देहरादून के पूर्व और पश्चिम में गंगा व यमुना नदियां बहती हैं. इस के उत्तर में हिमालय और दक्षिण में शिवालिक पहाडि़यां हैं. शहर को छोड़ते ही जंगल का हिस्सा शुरू हो जाता है. यहां पर वन्य प्राणियों को भी देखा जा सकता है.
देहरादून प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा शिक्षा संस्थानों के लिए भी प्रसिद्ध है. देहरादून 2110 फुट की ऊंचाई पर स्थित है. पर्वतों की रानी मसूरी के नीचे स्थित होने के कारण देहरादून में गरमी का मौसम भी सुहावना रहता है.
दर्शनीय स्थल
देहरादून में घूमने लायक सब से अच्छी जगह सहस्रधारा है.  देहरादून के करीब ही मसूरी है. यहां लोग जरूर घूमने जाते हैं. सहस्रधारा देहरादून से सब से करीब है. सहस्रधारा गंधक के पानी का प्राकृतिक स्रोत है. देहरादून से इस की दूरी करीब 14 किलोमीटर है. जंगल से घिरे इस इलाके में बालदी नदी में गंधक का स्रोत है. गंधक का पानी स्किन की बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है. बालदी नदी में पडे़ पत्थरों पर बैठ कर लोग नहाते हैं. सहस्रधारा जाने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा उपलब्ध है. बस का किराया 20-22 रुपए के आसपास है. आटो टैक्सी आनेजाने का 200 रुपए ले लेती है.
सहस्रधारा के बाद ‘गुच्चू पानी’ नामक जगह भी देखने वाली है. यह शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गुच्चू पानी जलधारा है. इस का पानी गरमियों में ठंडा और जाड़ों में गरम रहता है. गरमियों में घूमने वाले यहां जरूर आते हैं. गुच्चू पानी आने वाले लोग अनारावाला गांव तक कार या बस से आते हैं. यहीं पर घूमने वाली एक जगह और है जिस को रौबर्स केव के नाम से जाना जाता है. देहरादून से सहस्रधारा जाने वाले रास्ते के बीच ही खलंग स्मारक बना हुआ है. यह अंगरेजों और गोरखा सिपाहियों के बीच हुए युद्ध का गवाह है. 1 हजार फुट की ऊंचाई पर यह स्मारक रिसपिना नदी के किनारे स्थित है.
देहरादूनदिल्ली मार्ग पर बना चंद्रबदनी एक बहुत ही सुंदर स्थान है. देहरादून से इस की दूरी 7 किलोमीटर है. यह जगह चारों ओर पहाडि़यों से घिरी हुई है. यहां आने वाले लोग इस का प्रयोग सैरगाह के रूप में करते हैं. यहां पर एक पानी का कुंड भी है. अपने सौंदर्य के लिए ही इस का नाम चंद्रबदनी पड़ गया है.  देहरादून से 15 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच बहुत ही खूबसूरत जगह को लच्छीवाला के नाम से जाना जाता है. जंगल में बहती नदी के किनारे होने के कारण लोग घूमने आते हैं. जंगल में होने के कारण यहां पर जंगली पशुपक्षी भी यहां पर देखने को मिल जाते हैं.
देहरादूनचकराता रोड पर 50 किलोमीटर की दूरी पर कालसी जगह है जहां पर सम्राट अशोक के प्राचीन शिलालेख देखने को मिल जाते हैं. यह लेख पत्थर की बड़ी शिला पर पाली भाषा में लिखा है. पत्थर की शिला पर जब पानी डाला जाता है तभी यह दिखाई देता है.
देहरादूनचकराता मार्ग पर 7 किलोमीटर दूर वन अनुसंधानशाला की सुंदर सी इमारत बनी है. यह इमारत ब्रिटिशकाल में बनी थी. यहां पर एक वनस्पति संग्रहालय बना है जिस में पेड़पौधों की बहुत सारी प्रजातियां रखी हैं.
गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर वन्यजीवों के संरक्षण के लिए 1977 में चीला वन्य संरक्षण उद्यान को बनाया गया था. यहां पर हाथी, टाइगर और भालू जैसे तमाम वन्यजीव पाए जाते हैं. नवंबर से जून का समय यहां घूमने के लिए सब से उचित रहता है. शिवालिक पहाडि़यों में 820 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में राजाजी नैशनल पार्क बनाया गया है. इस पार्क में स्तनपायी और दूसरी तरह के तमाम जीवजंतु पाए जाते हैं. सर्दी के मौसम में आप्रवासी पक्षी भी यहां पर खूब आते हैं.
कौसानी 
कौसानी को भारत की सब से खूबसूरत जगह माना जाता है. शायद इसी वजह से इस को भारत का स्विट्जरलैंड कहते हैं. कौसानी उत्तराखंड के अल्मोडा शहर से 53 किलोमीटर उत्तर में बसा है. यह बागेश्वर जिले में आता है. यहां से हिमालय की सुंदर वादियों को देखा जा सकता है. कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है. यहां पहुंचने के लिए रेलमार्ग से पहले काठगोदाम आना पड़ता है. यहां से बस या टैक्सी के द्वारा कौसानी पहुंचा जा सकता है. दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से कौसानी के लिए बस सेवा मौजूद है.
कौसानी में सब से अच्छी घूमने वाली जगह यहां के चाय बागान हैं. ये कौसानी के पास स्थित हैं. यहां चाय की खेती को देखा जा सकता है. घूमने वाले यहां की चाय की खरीदारी करना नहीं भूलते. यहां की चाय का स्वाद जरमनी, आस्टे्रलिया, कोरिया और अमेरिका तक के लोग लेते हैं. भारी मात्रा में यहां की चाय इन देशों को निर्यात की जाती है.
कौसानी के आसपास भी घूमने वाली जगहें हैं. इन में कोट ब्रह्मारी 21 किलोमीटर दूर है. अगस्त माह में यहां मेला लगता है. 42 किलोमीटर दूर बागेश्वर में जनवरी माह में उत्तरायणी मेला लगता है. यहां से कुछ दूरी पर ही नीलेश्वर और भीलेश्वर की पहाडि़यां हैं जो देखने में बहुत सुंदर लगती हैं.

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