हमारे देश में ट्रेनों की औसत सुस्त रफ्तार बीते कई दशकों से कायम है, लेकिन उस के साथ ही यह सपना भी आम लोगों को दिखाया जाता रहा है कि भारत में बुलेट ट्रेनें चलेंगी. इधर इस सपने में एक और बढ़ोतरी हुई है.

दावा किया जा रहा है कि नई तकनीक की मदद से दिल्ली से मुंबई का सफर 1 घंटा 10 मिनट में और मुंबई से चेन्नई का सफर सिर्फ 30 मिनट में पूरा हो सकता है. इसी तरह चेन्नई से बेंगलुरु की दूरी महज आधे घंटे में तय हो सकेगी. इन दूरियों को तय करने में वैसे तो हवाईजहाज से ज्यादा समय लगता है, लेकिन फरवरी, 2017 में रेलमंत्री सुरेश प्रभु ने एक ऐसी टैक्नोलौजी पर चर्चा की, जिसे अगर वास्तविकता में बदला जा सका तो लोग बुलेट ट्रेन से भी तेज सफर कर सकते हैं. यह नई तकनीक है हाइपरलूप, जिस की इन दिनों अमेरिका समेत कईर् देशों में चर्चा है.

ऐसे हुई शुरुआत

हालांकि यह एक मुश्किल काम माना जाता है कि जिस रफ्तार से विमान हवा में उड़ते हैं, उसी गति से ट्रेनें जमीन पर चल सकें. इस बारे में अभी तक सब से अधिक तेजी बुलेट ट्रेनें ही दिखा सकी हैं. अब तक के प्रयोगों में बुलेट ट्रेन अधिकतम 600 किलोमीटर प्रति घंटे तक पहुंच सकी है पर सफर के जिस एक नए उपाय की चर्चा दुनिया में हो रही है, इस तकनीक से जमीन पर ही 1,200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रेन चल सकती है. यह चमत्कार एक नई तकनीक हाइपरलूप के माध्यम से पूरा करने का सपना देखा जा रहा है. हाइपरलूप का संबंध अंतरिक्ष तकनीक से भी जोड़ा जा सकता है. असल में, लोगों को अंतरिक्ष की सैर कराने की तैयारी कर रही प्रसिद्ध स्पेस कंपनी ‘स्पेसऐक्स’ के जनक और टेस्ला मोटर्स के कोफाउंडर व सीईओ एलन मस्क ने ही सब से पहले हाइपरलूप तकनीक से ट्रेन चलाने के बारे में सोचा है. एलन मस्क ने साल 2013 में हाइपरलूप का प्रस्ताव दुनिया के सामने रखते हुए ऐलान किया था कि दुनिया में कोई भी संगठन चाहे तो संसाधन जुटा कर हाइपरलूप प्रोजैक्ट पर काम कर सकता है. यही वजह है कि मस्क के बजाय इस कल्पना को 2 अन्य कंपनियां हाइपरलूप वन और हाइपरलूप ट्रांसपोर्टेशन टैक्नोलौजीज (एचटीटी) साकार करने में जुटी हुई हैं और ये दुनियाभर में 7 परियोजनाओं के लिए समझौते पर दस्तखत कर चुकी हैं.

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