जब से प्रत्यक्ष उदाहरण रखने की आवश्यकता का आभास हुआ, तब से एकएक चिह्न का निर्माण हुआ. जब चिह्न नहीं थे, तब मौखिक हिसाब किया जाता था. चिह्नों और 0 से 9 तक 10 संख्याओं के आधार पर कोई भी संख्या तैयार करना सहज और सरल है, परंतु इन संख्याओं पर कुछ विशिष्ट क्रिया करने की आवश्यकता ने ही धन (+), ऋण (-), गुणा और भाग चिह्नों को जन्म दिया. जानिए, इन के वर्तमान रूप में विकसित होने के पीछे का इतिहास :

धन चिह्न (+)

धन (जोड़ने) की क्रिया के लिए कुछ प्राचीन भारतीय गणितज्ञ किसी भी चिह्न का उपयोग नहीं करते थे. कुछ गणितज्ञ 2 अंकों के बीच बिंदु का उपयोग करते थे. इतालवी गणितज्ञ अंगरेजी के ‘प्लस’ (+) शब्द के पहले अक्षर ‘पी’ का उपयोग धन के लिए करते थे. मध्ययुग के यूरोपीय गणितज्ञ ‘और’ अर्थ वाले लैटिन शब्द ‘द्गद्व’ का उपयोग करते थे. फिर इस के लिए ‘%’ चिह्न का उपयोग होने लगा.

फिर माइकल स्टिफेल नामक गणितज्ञ ने वर्ष 1544 में ‘अरिथ्मेटिक’ नामक ग्रंथ में ‘+’ चिह्न को धन चिह्न दर्शाने के लिए प्रयोग किया और तब से हम उसी चिह्न को धन चिह्न के रूप में प्रयोग करते आ रहे हैं.

ऋण चिह्न (-)

धन चिह्न के साथ मौजूदा ऋण चिह्न (-) का प्रथम बार प्रयोग करने का श्रेय भी माइकल स्टिफेल को ही है. ऋण चिह्न के लिए इतालवी गणितज्ञ अंगरेजी के ‘माइनस’ शब्द के पहले अक्षर ‘एम’ का प्रयोग करते थे. गणितज्ञ पसिओली भी पहले ऋण के लिए ‘एम’ चिह्न का ही प्रयोग करते थे. किंतु बाद में पसिओली व हैक्टोग्लिआ ने भी ऋण दर्शाने के लिए ‘-’ चिह्न का प्रयोग शुरू कर दिया. ‘हिएटा’ नामक गणितज्ञ ‘अ-ब,’ इस रीति से ऋण दर्शाते थे.

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