औनलाइन बैंकिंग के इस दौर में हर लेनदेन नैटवर्किंग पर टिका है. ऐसे में साइबर लुटेरे बैंकों की लेनदेन प्रक्रिया को हैक कर लाखोंकरोड़ों का चूना लगा रहे हैं. जरूरत है इन से सावधान रहने की.

अगर आप बैंक से जुड़े ज्यादातर काम मोबाइल या इंटरनैट बैंकिंग से करते हैं तो सावधान हो जाइए, क्योंकि दुनिया में ऐसे साइबर लुटेरे (हैकर्स) सक्रिय हैं जो कब और किसे कितनी बड़ी चपत लगा दें, कहा नहीं जा सकता. एक आम उपभोक्ता के लिए खतरा उतना बड़ा तो नहीं है, लेकिन बड़ी कंपनियों और खुद बैंकों की नींद इन साइबर लुटेरों की वजह से उड़ गई है.

पिछले कुछ महीनों में ऐसी कुछ घटनाएं हुई हैं, जिन्होंने भारत समेत पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया है. साल की शुरुआत में दिल्ली स्थित एक फार्मा कंपनी और 3 बैंकों के कंप्यूटर्स साइबर लुटेरों ने हैकिंग के जरिए कब्जे में ले लिए. इन सारे मामलों में हैकिंग के लिए फिरौती मांगने के लिए मशहूर सौफ्टवेयर (रैंसमवेयर) लेचिफर का इस्तेमाल किया गया. कब्जा छोड़ने के बदले में साइबर लुटेरों ने प्रत्येक कंप्यूटर के बदले एक बिटकौइन यानी लगभग 30 हजार रुपए की मांग की, जो कुल मिला कर लाखों डौलर के बराबर थी. दावा किया गया कि इन बैंकों और फार्मा कंपनियों ने अपने उच्च अधिकारियों के कंप्यूटर्स को डीफ्रीज करने के लिए कुछ भुगतान भी किया, पर साथ में उन्होंने एथिकल साइबर हैकिंग में विशेषज्ञ निजी साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञों और फर्मों की मदद भी ली.

दुनिया की सब से बड़ी साइबर लूट

भारत से बाहर अब तक की सब से बड़ी साइबर लूट की घटना बंगलादेश के सैंट्रल बैंक में हुई. इस में 81 मिलियन डौलर यानी करीब 550 करोड़ रुपए की रकम पर साइबर लुटेरों ने हाथ साफ कर दिया. लूट की घटना सिर्फ रकम के मामले में बड़ी नहीं थी बल्कि इतनी दूर तक फैली थी कि इस का खुलासा होने में ही एक महीने से ज्यादा का वक्त लग गया.

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