पिताजी को महंत श्रवणदास के कमरे में छोड़ कर रक्षित बाहर आया और बड़े बेमन से हौल में लगा टीवी देखने लगा. अचानक टीवी पर आ रहे समाचार ने उसे चौंकाया-

‘हाथरस में भोलेबाबा के प्रवचन के दौरान हुई भगदड़, 121 लोगों की मौत. भगदड़ में दबे अधिकांश लोग भयंकर गरमी और उमस में सांस न ले पाने व दबने से मर गए.’

ओह, ये बाबा लोग और न जाने कितने परिवारों को तोड़ेंगे और न जाने कितने लोगों की जान लेंगे. जाते ही क्यों हैं लोग इन के प्रवचन सुनने, आखिर हमारे जैसा ही कोई इंसान कैसे भगवान का दूत हो सकता है? अब वह दूसरों की क्या कहे, उस के अपने पिता ने ही मंदिर और भगवान को ले कर तूफान मचा रखा है. आखिर हार कर उसे पिताजी को उन के कहे अनुसार महंत के पास लाना ही पड़ा है.

वह बहुत अच्छी तरह जानता है कि ये सब ढोंगी हैं पर खुद को बताते ऐसे हैं जैसे मानो ये भगवान से साक्षात्कार कर के आए हों. पर आज सबकुछ जानते हुए भी वह अपने पिता के आगे मजबूर है और अपने ही पिता को अपने साथ अहमदाबाद में रहने के लिए राजी करने के लिए उसे मंदिर के महंत के आगे नतमस्तक ही होना पड़ रहा है. इन ढोंगियों के आगे झुकते हुए वह बेबस है, हताश है पर करे तो करे क्या. अपने पिता को यों मंदिर में इन के भरोसे भी तो नहीं छोड़ सकता.

“अरे, तुम यहां बैठे हो, पिताजी कहां हैं,” बड़ीबहन रितिका की आवाज सुन कर वह चौंक गया.

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