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वह बहुत देर से कतार में खड़ा था. उस के पीछे उस की पत्नी खड़ी थी. उन्हें नियमानुसार, जूतेचप्पलें देवालय से बहुत दूर उतारना पड़े थे. तपती जमीन पर उन के तलवे जल रहे थे. वे सोच रहे थे कि भगवान का दर्शन चाहिए तो कष्ट तो उठाने ही होंगे.

वे मन में असीम श्रद्धा लिए, लंबी कतार के साथ धीरेधीरे आगे बढ़ने लगे. उन के सामने बहुत दूर, श्वेत संगमरमर से बना भव्य देवालय चमक रहा था. वहीं साक्षात भगवान मिलेंगे, यह सोच वे गदगद हुए जा रहे थे.

धीरेधीरे वे देवालय के प्रवेशद्वार पर पहुंच गए. वहां खड़े कर्मचारियों ने उन की जांच की,"मोबाइल हो तो अंदर लौकर में रखिए," कर्मचारी ने निर्देश दिया.

" नहीं है," मोबाइल न खरीद पाने की असमर्थता को उस ने चेहरे पर आने से रोका.

"ठीक है. उधर चले जाइए, उधर सभागार है," कर्मचारी ने सभागार के मार्ग की ओर संकेत किया. अब वे मंदिर के विशाल सभागार में थे.
सभागार में श्रीअनंत देव की विशाल तसवीर लगी हुई थी. उन के दोनों हाथ आशीर्वाद मुद्रा में थे. भक्त तसवीर से आशीर्वाद ले रहे थे. श्रद्धा से उन की आंखें सजल हो रही थीं.

सभागार में पुरुषों और महिलाओं को अलगअलग स्थान पर बैठने का कहा गया. वातानुकूलित सभागार की शीतल हवा सुकून दे रही थी. वह बुदबुदा उठा, 'भगवान आप की माया, कभी धूप कभी शीतल छाया."

उस ने पत्नी की ओर देखा. भीड़ के बीच वह आंखें बंद कर बैठी हुई थी. शांति का भाव उस के चेहरे पर थिरक रहा था. उस ने भी ध्यान लगाना चाहा. वह आंखें बंद कर ही रहा था कि एक श्वेत वस्त्रधारी सेविका सभागार के मंच पर उपस्थित हुई. सभागार में सन्नाटा छा गया.

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