आंगन में आम का पेड़ चारों ओर फैला था. गरमी के इस मौसम में खटिया डाल कर इस के नीचे बैठने का आनंद ही असीम होता है. पेड़ पर बड़ीबड़ी कैरियां लटकी हुई हों और डालियों पर कोयल कूक रही हो.

मैं अकसर दोपहर में इस के नीचे ही बैठना पसंद करती हूं. यह पेड़ बाहर सड़क से भी दिखलाई देता है. आनेजाने वाले कई राहगीर उस पर लटकती बड़ीबड़ी कैरियों को ऐसे निहारते हैं मानो आंखों से ही खा जाएंगे. पिछले दिनों मैं बैठी थी कि एक राहगीर अपनी पुत्री को साइकिल पर लिए जा रहा था. उस लड़की ने कैरियों को लटकते हुए देखा तो मचल पड़ी. ‘मैं अपने हाथ से एक फल तोड़ूंगी,’ कह कर वह वहीं लोटपोट होने को तैयार.

मैं दरवाजे पर खड़ी थी. मैं ने गेट खोला और उस राहगीर से बच्ची के रोने का कारण पूछा तो उस ने बड़े संकोच के साथ बताया, ‘‘बिटिया आम के पेड़ से एक कैरी तोड़ने की जिद कर रही है.’’
बच्ची की आंखों में मोटेमोटे आंसू आ कर ठहर गए थे.

‘‘मैं मात्र एक ही कैरी तोड़ने की इजाजत दूंगी,’’ यह कह कर मैं ने आने के लिए रास्ता दे दिया. बेटी खुश हो गई और उस ने पूरी ईमानदारी से एक ही कैरी तोड़ी. राहगीर ‘धन्यवाद’ कह कर चला गया.

मेरी बिटिया नेहा इन दिनों कोई ग्रीष्मकालीन कोर्स कर रही है इसलिए वह होस्टल में है. वह थोड़े दिनों के लिए आई थी और फिर चली गई थी. घर सुनसान सा हो गया था.

मैं आम के पेड़ के नीचे बैठ कर अकसर अपने बचपन को याद करती थी जो अब कभी लौट कर नहीं आएगा. अचानक गेट खुलने की आवाज आई, मैं ने देखा कि अनूप यानी मेरे पति गेट से अंदर आ रहे हैं. कैसे असमय आ गए, आने का समय तो शाम 5 बजे का है, यह सोचती हुई मैं तेजी से उठी.

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