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मां बाप अकसर इस कहावत ‘आ बैल मुझे मार’ के शिकार हो जाते हैं. पहले तो मुसीबत को बड़े जोश से निमंत्रण देते हैं और फिर परेशान हो कर सिर पटकते हैं. दूरदर्शिता तो दूरदर्शन पर भी नहीं दिखाई देती जो एक आम आदमी के जीवन का अहम हिस्सा बन गई है. अब निशा और वरुण की सगाई तो दोनों के मांबापों ने जल्दबाजी में न केवल कर दी बल्कि अच्छी तरह से ढोल बजा कर की. सारे रिश्तेदारों और महल्ले वालों को मालूम है, यहां तक कि पान वाले और बनिए को भी, जिस के यहां से घर का सामान आता है, मालूम है. नौकरानी रोज अपनी मांगें बढ़ाती जाती है. एक नहीं, 3 साडि़यां, वेतन दोगुना और नेग अलग. जानते हुए भी सब लोग पूछते रहते हैं कि शादी कब हो रही है? शादी के सिवा सब विषयों पर पूर्णविराम लग गया है. मुश्किल यह है कि शादी होने में अभी  7 महीने बाकी हैं. 1-2 महीने तो यों ही गुजर जाते हैं, पर 7 महीने? परिवार वाले तो जब कभी इकट्ठा बैठते हैं, खोखली योजनाओं पर बहस कर लेते हैं. वैसे, होगा तो वही जो होना है, पर 7 महीने का विकराल अंतराल 7 साल सा लगता है. सगाई के साथ ही शादी क्यों न कर दी?

चलिए परिवार वालों को छोडि़ए. किसी ने निशा और वरुण के बारे में भी सोचा है? रोज मिलें और प्रेमवाटिका में विचरण करें तो मुश्किल और कई दिनों तक न मिलें तो विरह के मारे बुरा हाल. सब से बड़ी मुश्किल तो इन लोगों की है. जब सगाई हो जाए और मिलने न दें तो यह परिवार का सरासर अन्याय ही कहा जाएगा. दूसरी ओर मिलने की गति और अवधि दिन पर दिन बढ़ती जाए तो मांबाप का चिंतित होना स्वाभाविक है. विशेषकर लड़की के मांबाप का. बुरा जमाना है, पैर फिसलते देर नहीं लगती. कोई ऊंचनीच हो गई तो जगहंसाई तो होगी ही, मुंह दिखाने योग्य भी न रहेंगे. कहीं रिश्ता तोड़ने की नौबत आ गई तो लड़की तो बस गई काम से. दूसरा कौन पकड़ेगा हाथ?

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