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सांझ का भूला
उम्र के 50 सावन पार करने के बाद सीता ने घर की देहरी पार कर दी थी. बेटे, बहुओं, पोतों को छोड़ा था. लेकिन सुब्बम्मा के विचारों ने उसे ऐसा सहारा दिया कि वह अपने को ‘सांझ का भूला’ समझने लगी. आखिर हुआ क्या था?
भाग - 1
सीता को खुद के फैसले पर विश्वास नहीं हो रहा था. 50 वर्ष की उम्र में वह घर की देहरी पार कर अकेली निकल आई है. यह कैसे संभव हुआ?
भाग - 2
सीता को इधर कुछ दिनों से अपनी एकांत जिंदगी नीरस लगने लगी थी. न कोई तीजत्योहार ढंग से मना पाती और न ही किसी सांस्कृतिक आयोजन में जा पाती.
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