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नीता स्कूल से लौट कर आई. उस ने घड़ी पर नजर डाली, शाम के 6 बजने वाले थे. उस ने किताबें टेबल पर रख दीं और थकी सी पलंग पर बैठ गई.

उसे कमरा बेहद सूना लग रहा था. ‘आलोक आज चला जो गया था. अगर वह कुछ दिन और रहता तो कितना अच्छा लगता पर...’ सोचतेसोचते वह पिछले दिनों की यादों में खो गई.

उस दिन ठंड कुछ ज्यादा थी. घर के अंदर भी ठंड का एहसास हो रहा था. मम्मी धूप में बैठी स्वैटर बुन रही थीं. धीरज जोरजोर से बोल कर सबक याद कर रहा था. नीता टिफिन तैयार कर रही थी कि तभी घंटी बजी.

दरवाजा खोलने मम्मी ही गईं. सामने एक अपरिचित युवक खड़ा था.

‘चाचीजी, नमस्ते. आप ने पहचाना मुझे?’ वह हाथ जोड़ कर बोला.

‘आप...कौन?’ उन्हें चेहरा जानापहचाना लग रहा था.

‘मैं रामसिंहजी का बेटा, आलोक...’ वह बोला.

‘अरे, तुम रामसिंह भैया के बेटे हो. कितने बड़े हो गए हो. तभी तो मुझे लगा मैं ने तुम्हें कहीं देखा है,’  वे हंस कर बोलीं, ‘बेटा, अंदर आओ न.’

वे दरवाजे से एक तरफ हट गईं. आलोक ने बैग कंधे से उतार कर नीचे रख दिया. फिर आराम से सोफे पर बैठ गया. उस ने एक पत्र अपनी जेब से निकाल कर मम्मी को दिया.

‘अच्छा, तो तुम यहां पीएससी की परीक्षा देने आए हो?’ पत्र पढ़ते हुए मम्मी ने पूछा.

‘जी चाचीजी,’ उस ने आदर से कहा.

‘ठीक है. इसे अपना ही घर समझो,’ फिर वे रुक कर बोलीं, ‘अरी, नीता बिटिया, देख कौन आया है और सुन चाय भी बना ला.’

नीता की समझ में कुछ नहीं आया. कौन है, देखने के लिए वह बाहर आ गई.

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