लोगों की यह धारणा है कि प्राचीन काल में राजामहाराजा 2 खजाने रखते थे, सामान्य काल के लिए ‘सामान्य कोष’ तथा आपातकाल के लिए ‘गुप्त कोष.’ सामान्य कोष की जानकारी सभी को होती थी मगर गुप्त कोष भूमि के नीचे अत्यंत गुप्त रूप से बनाया जाता था. गुप्त कोष में खानदानी संपत्ति व लूटमार से प्राप्त संपत्ति रखी जाती थी. उस का उपयोग अकाल, बाढ़, महामारी, आक्रमण आदि के समय किया जाता था. अब राजामहाराजा नहीं रहे लेकिन लोगों का विश्वास है कि पुराने किलों, दुर्गों, महलों और खंडहरों में अभी भी बहुत से गुप्त खजाने दबे पड़े हैं.

झांसी से 28 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश का शहर दतिया स्थित है. दतिया जनपद में 2 तहसीलें हैं, दतिया और सेंवढ़ा. दोनों स्थानों पर विशाल किले हैं. दतिया के किले में यहां के पूर्व महाराज का निवास है तथा सेंवढ़ा के किले के अधिकांश भाग में सरकारी कार्यालय हैं. सेंवढ़ा से कुछ दूरी पर स्थित मलियापुरा गांव में रामहजूर और अशोक नाम के 2 मित्र रहते थे. वे दोनों हमउम्र और बेरोजगार थे. दोनों उत्साही युवक बिना मेहनत किए रातोंरात लखपति बनना चाहते थे.

अचानक एक दिन रामहजूर के मन में सेंवढ़ा के किले के खजाने का खयाल आया. उस ने सोचा कि अगर किसी तरह यह खजाना उस के हाथ लग जाए तो उस के सारे कष्ट दूर हो सकते हैं. रामहजूर ने अपने मन की बात अशोक को बताई. अशोक भी रामहजूर की ही प्रवृत्ति का था, अत: उसे उस की बात बहुत अच्छी लगी. दोनों मित्र सेंवढ़ा के किले के खजाने को प्राप्त करने की योजनाएं बनाने लगे. एक बार दोनों मित्र सेंवढ़ा गए तथा किले का सूक्ष्म अवलोकन किया. वहां एक भाग में सरकारी कार्यालय हैं तथा दूसरे भाग में एसएएफ के जवान भी रहते हैं. अत: दोनों मित्रों को लगा कि खजाने की खोज के लिए 5-7 लोगों की जरूरत पड़ेगी.

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