कासगंज की आग ठंडी हो चुकी है. इस के साथ ही साथ चंदन गुप्ता के परिवार के साथ खड़े होने वालों की तादाद भी अब नहीं के बराबर है. दंगे के समय जिस चंदन के शव को तिरंगे में लपेट कर शहीद का दर्जा दिया गया, उस पर उत्तर प्रदेश सरकार चुप है. चंदन की मां को लगता है कि अगर कासगंज में सांप्रदायिक आग नहीं भड़की होती तो उस के घर का चिराग नहीं बुझा होता. देश कासगंज की घटना को भूल सकता है, पर चंदन के परिवार को कासगंज का दंगा कलंक बन कर जीवन भर याद रहेगा.

25 जनवरी को चंदन गुप्ता अपने कुछ साथियों के साथ घर के बाहर बैठा था. वह जुझारू किस्म का युवक था, राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के नाम पर कुछ भी कुरबान करने को तैयार रहने वाला था. 26 जनवरी की पूर्वसंध्या पर वह सोच रहा था कि तिरंगा यात्रा कैसे निकाली जाएगी. शहर में धारा 144 लागू थी. कासगंज में मंदिर के सामने बैरिकेडिंग की वजह से 2 समुदायों के बीच तनाव था. चंदन ने अपने साथियों को समझाते हुए कहा कि अब प्रदेश में हमारी सरकार है. हम तिरंगा यात्रा निकालेंगे. हर युवक के मन में अपने देश और राष्ट्रीय झंडे को ले कर सम्मान था. चंदन की बात पर सब तैयार हो गए.

कासगंज के अमापुर में सुशील गुप्ता का परिवार रहता था. उन का घर गली के अंदर था. सुशील गुप्ता के परिवार में पत्नी संगीता और बेटी वंदना सहित 22 साल का बेटा अभिषेक था. सुशील गुप्ता का अपना बिजनैस है. बेटा अभिषेक गुप्ता उर्फ चंदन गुप्ता ‘संकल्प’ नाम की संस्था चलाता था.

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