पिछले कुछ समय से देश के विभिन्न हिस्सों में सशक्त जातियां आरक्षण के लिए आंदोलन कर रही हैं. हरियाणा में आरक्षण को ले कर जाट दोबारा आंदोलन कर रहे हैं. जाट, कापू, पटेल, गुर्जर और मराठा जातियां हरियाणा से आंध्र प्रदेश तक फैली हुई हैं. उन में एक बात समान है कि वे अपनेअपने क्षेत्रों की प्रभुत्वसंपन्न, सशक्त और अमीर जातियां हैं. इस के बावजूद  आरक्षण के लिए कोहराम मचाए हुए हैं. देश की ऐसी जातियों को 5वें दशक में  जानेमाने समाजशास्त्री एम एन श्रीनिवास ने प्रभुजातियां या प्रभुत्वशाली जातियां कहा था. जाट तो उन की प्रभुत्वशाली जाति की कसौटी पर सौ फीसदी खरे उतरते हैं.

श्रीनिवास ने यह नाम उन को दिया था जिन का अपने इलाकों में अच्छीखासी तादाद के कारण अहम स्थान होता है या फिर उन के पास इतनी बड़ी तादाद में जमीन होती है कि जिस के जरिए वे सत्ता के केंद्र बन जाते हैं. हरियाणा के जाटों की तादाद एकचौथाई से ज्यादा है मगर उन के पास हरियाणा की तीनचौथाई जमीन है. इस कारण जाट शब्द जमींदार का पर्याय बन गया है. लेकिन हाल ही में हुए उन के आरक्षण आंदोलनों में इन जातियों में जैसा आक्रोश नजर आया, उस से यह स्पष्ट हो गया कि उन के लिए सबकुछ ठीकठाक नहीं है. तब से लोगों के मन में सवाल है कि प्रभुत्वशाली जातियां होने के बावजूद आरक्षण को ले कर वे इतनी बेकरार क्यों हैं?

आरक्षण की मांग

कई महीनों से नरेंद्र मोदी की जेलों में बंद 22 साल का हार्दिक पटेल गुजरात के 20 प्रतिशत आबादी वाले संपन्न और सशक्त पटेल समुदाय के बीच आरक्षण की मांग का चेहरा बन गया है. लाखों लोग आ रहे थे उस की सभाओं में उसे सुनने के लिए. कुछ राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि वह नरेंद्र मोदी के राज्य में मोदी के लिए चुनौती बनता जा रहा है. कुछ महीनों पहले की ही तो बात है, दुबई के एक क्रिकेट स्टेडियम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक झलक पाने को 40 हजार भारतीय बेताब नजर आए थे. और ठीक 12 घंटे पहले गुजरात के एक शहर में हार्दिक पटेल नाम का युवा 5 लाख लोगों की भीड़ इकट्ठा कर मोदी के लिए एक नई चुनौती खड़ी कर रहा था.

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