उम्र का कोई भी पड़ाव हो, हर अवस्था में इंसान को साथी की व प्यार की जरूरत होती है. फिर क्यों किसी पार्क या मौल में किसी बुजुर्ग दंपती को जब हाथ में हाथ डाले घूमते देखा जाता है तो उसे शर्मनाक माना जाता है? क्यों उन का मजाक बनाया जाता है? क्या प्यार व साथी की जरूरत सिर्फ युवाओं को होती है? बुजुर्ग होने का अर्थ क्या प्यार व साथी से भी रिटायरमैंट होता है?

इन सब सवालों का एक जवाब है, नहीं, बिलकुल नहीं. तो फिर 60 वर्ष से अधिक उम्र का कोई जोड़ा अकेले वक्त बिताना चाहता है तो क्यों समाज, उस के अपने बच्चे उन्हें गलत ठहराने लगते हैं?

बौलीवुड की फिल्म ‘बागबान’ की कहानी भी एक ऐसे ही बुजुर्ग दंपती के इर्दगिर्द घूमती है जिस में पतिपत्नी को उन के ही बच्चों के कारण उम्र के उस पड़ाव पर एकदूसरे से अलगाव व जुदाई का दर्द सहना पड़ता है जब उन्हें एकदूसरे के प्यार व अपनेपन की सब से अधिक जरूरत होती है. फिल्म के एक दृश्य में जब अमिताभ बच्चन अपनी पत्नी हेमा मालिनी से अलग न होने की बात कहते हैं तो उन के फिल्मी बच्चे उन का उपहास बनाते हैं कि मौमडैड को इस उम्र में प्यार सूझ रहा है.

यह कहानी उम्र के आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुके उन सभी दंपतियों के अलगाव व जुदाई के दर्द को दर्शाती है जो ऐसे दौर से गुजर रहे हैं. अलगाव व जुदाई का यह दर्द शारीरिक व मानसिक दोनों जरूरतों पर प्रभाव डालता है.

दरअसल, भारतीय समाज में 60 के पार जीवन में स्थायित्व आने लगता है, जिम्मेदारियां कम होने लगती हैं, कैरियर व आर्थिक स्थिति बेहतर होती है. बच्चों की जिम्मेदारियों से मुक्त बुजुर्गों को आजादी व जिंदगी में सुकून का एहसास देती है और यही आजादी बुजुर्ग जोड़ों को एकदूसरे के प्रति सैक्स संबंधों की ओर खूब आकर्षित करती है. बुजुर्ग दंपतियों के ऐसे खुशनुमा दौर पर परिवार, समाज व परंपराओं के बंधन पानी फेर देते हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...