गुलाबी सपनों का शहर, फैशन की राजधानी, साहित्य और कलाओं का महातीर्थ, उदार यूरोप का सब से उदार शहर, जहां जिंदगी जैसे नई हिलोरें भरती है. लेकिन कुछ दिन पहले उस शहर यानी पेरिस पर हुए आईएस के आतंकी हमले ने स्वप्न को दुस्वप्न में बदल दिया. 120 लोगों की मौत से फ्रांस की राजधानी पेरिस सन्न रह गई. वहां जब एक के बाद एक 7 धमाके हुए जिस से पूरा शहर ही नहीं, पूरा देश और पूरी दुनिया दहल गई.

पेरिस अभी शार्ली एब्दो पर हुए हमले की पीड़ा से उबरा भी नहीं था कि उस पर कुछ ही महीने बाद एक और बड़ा हमला हुआ. पहली प्रतिक्रिया में ही लोग दांत पीसते हुए इसलामी आतंक को जिम्मेदार ठहराने लगे थे जिस की तस्दीक थोड़ी देर में ही आईएसआईएस की मुनादी ने कर दी कि हां, हम ने किए हमले.

कट्टरवाद व पिछड़ेपन का दुश्चक्र

मजहब के नाम पर लोगों का सरेआम कत्ल करना और निर्दोषों की मौत का जश्न मनाना आतंकवाद का धर्म बना हुआ है.हमले के बाद से यूरोप में मुसलमान शरणार्थियों को पनाह देने के फैसले का विरोध शुरू हो गया. दरअसल, 2001 के बाद से दुनियाभर में मुसलमानों के प्रति नफरत की भावना बलवती होती जा रही है. यूरोप तो इसलामीफोबिया से ग्रस्त है. लोग कुछ सिरफिरे लोगों द्वारा किए गए नरसंहार और हिंसा के लिए आम मुसलमान को दोषी मानते हैं.

उन के बारे में यह आम है कि वे बहुत हिंसक और कट्टरवादी हैं जिस से आतंकवाद को बढ़ावा मिलता है. अपनी 1400 साल पुरानी धार्मिक पोथियों से चिपके हुए, उस जमाने के कानून को आज के जमाने में ज्यों का त्यों लागू करने की हिमायत करने वाले, आज भी 1400 साल पुरानी जिंदगी जीने की तमन्ना रखने वाले, उस के लिए गाहेबगाहे हिंसा का सहारा लेने वाले घोर कट्टरपंथी हैं.

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