उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व मध्य प्रदेश के राज्यपाल रामनरेश यादव के 52 वर्षीय व्यवसायी बेटे शैलेष यादव की जिंदगी में भले ही किसी चीज, खासतौर से पैसों, की कमी न थी पर उस के दिमाग पर क्ंिवटलों बोझ और दिल में अपराधबोध व ग्लानि इस तरह घर कर गई थी कि उस की वैभवशाली जिंदगी, जिस के लिए आम लोग तरसते हैं, उसे भार लगने लगी थी. इस अवसाद और परेशानी से छुटकारा पाने के लिए शैलेष को इकलौता रास्ता खुदकुशी का लगा जो उस ने बीती 25 मार्च को कर डाली. शैलेष की मौत पर देशभर में खासा बवाल मचा. मौत की खबर के साथ ही यह बात भी चस्पां हो कर आई कि शैलेष मध्य प्रदेश के व्यावसायिक परीक्षा मंडल यानी व्यापमं घोटाले काआरोपी था और कभी भी गिरफ्तार किया जा सकता था. कुछ दिन पहले ही मध्य प्रदेश एसटीएफ ने उसे नोटिस भेजा था. वह शिक्षक भरती घोटाले का आरोपी था. इस चर्चित घोटाले की जांच कर रही एसटीएफ के मुताबिक, शैलेष ने 10 उम्मीदवारों की नियुक्ति कराने के लिए पैसा लिया था. यह रकम शैलेष ने अपने एक अंतरंग मित्र विजय पाल के जरिए मध्य प्रदेश के राजभवन में ली थी. शैलेष की मौत कुदरती थी या फिर खुदकुशी, यह भले ही राज की बात रहे लेकिन हालात इशारा कर रहे हैं कि आत्महत्या की संभावनाएं ज्यादा हैं.

जमीर पर भारी जुर्म

शैलेष समझ गया था कि अब बच पाना मुश्किल है. वजह, व्यापमं घोटाले में कई दिग्गजों की गिरफ्तारी पहले ही हो चुकी थी. जाहिर है कि वह भी गिरफ्तार होता तो पिता के साथ घरपरिवार की मुश्किलें और तनाव भी बढ़ते. रामनरेश यादव एक भरेपूरे परिवार के मुखिया हैं. राजनीति में उन का अलग नाम और मुकाम है. व्यापमं घोटाले के पहले तक उन के दामन पर कोई दाग न लगना उन की ईमानदारी का ही सुबूत माना जाता रहा था. शैलेष की मौत के दिन उन के दूसरे 2 बेटे कमलेश और अजय उन की सेवा में लगे थे. अंतिम संस्कार के वक्त रामनरेश यादव को भी विशेष हवाई जहाज से लखनऊ ले जाया गया जो अपने अधेड़ बेटे की लाश देख फूटफूट कर रो पड़े. अब से कोई 30 साल पहले उन के एक बेटे ने पढ़ाई के दौरान ही खुदकुशी कर ली थी. कहना मुश्किल है कि एक और बेटे की लाश देख रामनरेश यादव पर क्या गुजरी होगी लेकिन तय है, उन्होंने भी शैलेष की तरह उस घड़ी को कोसा होगा जब जरा से लालच में उन्होंने भी कुछ नियुक्तियों की सिफारिश, कथित तौर पर ही सही, की थी.

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