कहते हैं अब से कोई डेढ़ सौ साल पहले जब भोपाल में नबाबों का शासन था तब भोपाल रियासत में भयंकर सूखा पड़ा था, अच्छी बारिश के लिए तत्कालीन नवाब ने अच्छी वारिश के लिए किन्नरों से भुजरियों (कजलियाँ) का जुलूस निकालने की गुजारिश की थी, किन्नरों ने नबाब की गुजारिश पूरी करते यह जुलूस निकाला तो जोरदार वर्षा हुई. तब से रक्षाबंधन के दूसरे दिन भुजरियों पर किन्नरों का जुलूस हर साल बदस्तूर निकलने की जो परम्परा पड़ी, वह आज तक कायम है. लेकिन वक्त के साथ साथ इस जुलूस का स्वरूप बदलता गया और आज हालत यह है कि इस जुलूस का पूरी तरह आधुनिकीकरण हो गया, जिसमें कुछ लोगों को फूहड़ता और अश्लीलता भी नजर आती है.

इस साल भी यह अनूठा जुलूस पूरी शिद्दत और धूमधाम से निकला. पुराने भोपाल की सड़कों का नजारा देखने काबिल था, जहां मनचले और शरीफ दोनों किस्म के लोग इस जुलूस का लुत्फ उठाते देखे गए. इस जुलूस की तैयारियों मे किन्नर भी कोई कसर नहीं छोड़ते और खूब सजते संवरते हैं. फिल्मी गानों की धुन पर नाचते गाते वे निकलते हैं, तो चारों तरफ से सीटियों और पैसों की बरसात होने लगती है. इस साल भी इस जुलूस को देखने इतनी भीड़ जमा थी कि पुलिस को अलग से इंतजाम करना पड़े थे.

एक युवा किन्नर ने बताया कि वह हर साल एक ब्यूटी पार्लर में जाकर मेकअप करवाता है और जानबूझ कर बदन उघाड़ू ड्रेस पहनता है, हालांकि कुछ किन्नर साड़ी और सलवार सूट में भी दिखे. युवा किन्नर फिल्मी नायिकाओं जैसी ड्रेस पहने दिखे, इनके ऊपर से ज्यादा न्योछावरें हुईं, इनकी अदाएं देखने राह चलते लोग भी रुकने मजबूर हो गए. अब तो आस पास से भी लोग खासतौर से इस जुलूस को देखने आने लगे हैं, जिसमे कोई वर्जना नहीं होती, होती है तो बस मस्ती डांस और ठुमके और किन्नरों के जलवे.

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