घरों में काम करने वाली सुषमा के परिवार में 5 सदस्य हैं : मांबाप, 2 बेटियां और 1 बेटा, यानी 2 पुरुष और 3 औरतें. घर के काम पांचों ही करते हैं. दोनों बेटियां मां के साथ मिल कर सुबह घर के कामकाज निबटा कर चार पैसे कमाने निकलती हैं और तब जा कर एक महानगर में किराए के मकान में रहते हुए और अपने खर्च चलाते हुए यह मुमकिन हो पाता है कि सुंदरवन के किसी गांव में रहने वाले एक परिवार को पैसा भेजा जा सके. सुषमा और उस की मां जैसी महिलाएं असंगठित यानी अनऔर्गनाइज्ड वर्कफोर्स का हिस्सा हैं. गांवों की अर्थव्यवस्था में ऐसी महिलाएं अहम भूमिका अदा करती हैं.

ये महिलाएं वर्कफोर्स का एक हिस्सा हैं,  एक बेहद उपयोगी और लाभकारी पर कम पढ़ा या अनपढ़ हिस्सा. वर्कफोर्स के दूसरे हिस्से को परिभाषित करना थोड़ा आसान है. संगठित क्षेत्र में अपनी शिक्षा और काबिलीयत के दम पर अपना परचम लहराने वाली महिलाएं भारतीय प्रशासनिक सेवा से ले कर सेना में, शिक्षा के क्षेत्र से ले कर सौफ्टवेयर इंडस्ट्री में, यहां तक कि साहित्य और कला के क्षेत्र में भी अपना नाम रौशन कर रही हैं. सेना से ले कर मैडिकल, हौस्पिटैलिटी से ले कर बैंकिंग तक में उन की भागीदारी दिखाई देने लगी है. यहां तक कि पुरुषप्रधान क्षेत्र माने जाने वाले रेलवे चालक और आटो ड्राइवरी में भी इक्कादुक्का ही सही, महिलाओं की भागीदारी के किस्से सुनने को मिल जाया करते हैं.

आंकड़े एकत्रित करने वाली एजेंसियां स्वीकार करती हैं कि कामकाजी होने के तौर पर महिलाओं की भागीदारी को अकसर वास्तविकता से बहुत कम आंका जाता है. बावजूद इस के, पिछले सालों में पेड वर्कफोर्स यानी वेतनभोगी जनबल में महिलाओं की भागीदारी तेजी से बढ़ी है.

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