प्राइवेट शिक्षा ने स्कूलों की पूरी व्यवस्था को बदल कर रख दिया है. अब स्कूल पहले जैसे नहीं रह गए हैं. स्कूल में आए एक बदलाव ने किशोरावस्था में पढ़ाई कर रहे छात्र और उस की टीचर के बीच उम्र के अंतर को भी घटा दिया है. उम्र के इस घटे हुए अंतर के चलते किशोर उम्र के युवाओं का आकर्षण अपनी टीचर के प्रति बढ़ने लगा है. फिल्ममेकर रामगोपाल वर्मा की तेलुगू फिल्म ‘सावित्री’ इसी मुद्दे को ध्यान में रख कर तैयार की गई है. एक तबका इस का विरोध भी कर रहा है. किशोर उम्र के बच्चों में युवा उम्र की टीचर के प्रति आकर्षण कोई अपराध नहीं है. यह एक मनोवैज्ञानिक परेशानी है. इस का हल इसी नजर से तलाश करने की जरूरत है.

कक्षा 11 और 12 में पढ़ने वाले बच्चे आपस में अपनी नईनई आई गणित की टीचर के बारे में बात कर रहे थे. एक लड़का बोला, ‘मुझे गणित से बहुत डर लगता है पर जब से नई टीचर आई है, मैं गणित की क्लास में जाने लगा हूं. उस के आने से गणित की बोरियत भरी क्लास में ताजगी का एहसास होता है.’ दूसरा बच्चा बोला, ‘सही कह रहा है यार. वह मुझे वैसी ही लगती है जैसे शाहरुख खान की फिल्म ‘मैं हूं न’ में सुष्मिता सेन लगती थी.’ 2 बच्चों की बहस में शामिल होते हुए तीसरे बच्चे ने कहा, ‘यार, वह बोलती कितने प्यार से है. हर सवाल को प्यार से समझाती है. पहले वाले सर तो सवाल पूछने पर ऐसे मुंह बनाते थे जैसे किसी ने उन के मुंह में कुनैन डाल दी हो.’ पहले वाले बच्चों को लगा कि उस के साथी ज्यादा बात कर रहे हैं. वह बहस को अपने हाथ में लेता हुआ बोला, ‘यार, पढ़ाईलिखाई की बातें जाने दो, मुझे तो उस का फैशन स्टाइल बहुत अच्छा लगता है. वह तो मुझे किसी हीरोइन जैसी लगती है.’

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