लग ऐसा रहा है जैसे ये सात  मौतें एक प्राकार्तिक हादसे से नहीं हुईं है बल्कि इनकी हत्या की गई है और एकलौता गुनहगार उज्जैन का प्रशासन है जिसने सिंहस्थ कुम्भ की तैयारियां ढंग से नहीं कीं थीं । 5 मई की शाम कोई 4 बजे आसमान मे बादल छाए तो कुम्भ मे आए श्रद्धालुओं को भीषण गर्मी से राहत मिली थी थोड़ी देर बाद जब बूँदा बाँदी शुरू हुई तो हर हर महादेव के नारे लगाते इन्हीं श्रद्धालुओं ने कहा की इन्द्र देवता भी कुम्भ का पुण्य लाभ उठाने आ गए पर देखते ही देखते घनघोर वारिश शुरू हो गई तो लोग इन्द्र , शंकर और दूसरे देवी देवताओं को भूल अपनी जान यम देवता से बचाने भागते नजर आए । इधर वायु देवता और प्रसन्न हो उठा तो मेला क्षेत्र के सैकड़ों पंडाल उखड़ कर गिर पड़े जिनके नीचे दबकर 6 लोग मारे गए और सौ के लगभग घायल हुये । घनघोर वारिश और आँधी तूफान का कहर लगभग 45 मिनिट तक रहा और इस दौरान मेले में  भगदड़ मची रही लेकिन तब तक जो होना था वो हो चुका था ।

वारिश इतनी तेज थी कि शिविरों और पांडालों में घुटने घुटने पानी भर गया और बिजली चली गई जिससे आसमानी अंधेरा और स्याह हो गया । यह सब कुम्भ की तैयारियों के लिहाज से नाकाफी और अप्रत्याशित था लिहाजा 7 बजे तक जब इस हादसे की खबर देश भर में पहुंची तो उसके साथ प्रशासन की लापरवाही का प्रमाण पत्र भी संलग्न था । फौरी तौर पर अंदाजा यह लगाया गया कि चूंकि तम्बू मिट्टी मे गड़े थे इसलिए पानी के वहाव में उखड़ गए । इस दुखद हादसे के और भी पहलू और चर्चाए हैं जिन पर प्रशासन को कोस रहे लोग जानबूझ कर गौर नहीं कर रहे मसलन कुम्भ में देश भर के नामी गिरामी बाबा साधू संत महंत ज्योतिषी तांत्रिक मांत्रिक महा मंडलेश्वर शंकरचार्य और अघोरी आदि मौजूद थे जो मोक्ष दिलाने का कारोबार करते हैं और सीधे अपनी पहुँच भगवान तक होना बताते हैं इनमे से किसी को क्यों इस हादसे के बारे में मालूम नहीं हुआ क्या इनकी सिद्धियाँ भी फर्जी हैं और ये सिर्फ पैसा बटोरने कुम्भ आते हैं तो  इस सवाल का जबाब न मे देने बालों को मान लेना चाहिए कि चमत्कार सिद्धियाँ परकाया प्रवेश अद्रश्य हो जाना जैसे दर्जनो दावे तो कपोलकल्पित और दूर की बातें हैं भगवान के इन दलालों में इतनी व्यावहारिक बुद्धि भी नहीं हाती कि वे मौसम का अंदाजा लगा सकें। 

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