2 में से तुम्हें क्या चाहिए, कलम या तलवार.. कविता की लाइनों में कवि ने सालों पहले जो सवाल  उठाया था, उसका जबाब बिहार के जहानाबाद जिले के सिकरिया पंचायत के युवाओं ने दे दिया है. नक्सलियों की बंदूकों से थर्राने वाले इस पंचायत में लड़के और लड़कियों ने बंदूक फेंक कर कलम और कंप्यूटर माउस थाम लिया है. उन्होंने फैसला कर लिया है कि उन्हें तलवार या बंदूक नहीं बल्कि कलम की ज्यादा दरकार है. नक्सली जिस बंदूक के जरिए गांवों में तरक्की लाने की बात करते हैं, वह कलम के जरिए ही आ सकती है.

पटना-गया रोड से 5 किलोमीटर उत्तर की ओर जहानाबाद जिला है. जहानाबाद जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर बसा है सिकरिया पंचायत. जहानाबाद के चप्पे-चप्पे में कभी नक्सलियों की तूती बोलती थी. उनका ही हुक्म चलता था. पुलिस उस इलाके में जाने से कतराती थी.

कभी बिहार का ‘लाल इलाका’ होने का कलंक ढोने वाले सिकरिया पंचायत की गलियों में घुसते ही उजालों का अहसास दिखने लगता है. कभी बारूद की गंध और गोलियों की तड़तड़ाहट के लिए बदनाम सिकरिया में अब कंप्यूटर के कीबोर्ड की खटखट, सिलाई मशीनों की संगीतमय खड़खड़ सुनाई पड़ती है और स्कूलों में एक्कम एक.. दो दूनी चार.. के सुर लगाते बच्चों का हुजूम नजर आता है. नक्सलियों के सफाए के लिए चलाए जा रहे ऑपरेशनों पर केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा हर साल करोड़ों-अरबों रूपए फूंकने की योजनाओं की पोल-पट्टी खोल देता है सिकरिया. सिकरिया ने इस बात को सच कर दिखाया है कि जब सड़क आगे बढ़ती है तो नक्सली पीछे हटने लगते हैं.

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