भारत के ‘10+2’ स्कूल सिस्टम की ही तरह अमेरिका में भी 12वीं पास करने के बाद कालेज में प्रवेश का प्रबंध पक्का करना पड़ता है. साधारण गे्रड्स पाने वाले और गरीबी की सीमारेखा से ऊपर परिवारों से आने वाले स्वाभिमानी छात्र पार्टटाइम जौब कर के अपने ईबीएफ यानी एजुकेशन बैनिफिट फंड में पैसे जमा करते हैं और कालेज की पढ़ाई करने के साथसाथ काम भी जारी रखते हैं. इलैक्ट्रौनिक/डिपार्टमैंट स्टोर्स या फास्ट फूड जैसे बिजनैसेज में किशोरों के पार्टटाइम काम के घंटे निर्धारित होते हैं ताकि उन की पढ़ाई में कोई व्यवधान न पड़े.

कई बिजनैसेज कार्यस्थल पर ही किशोरों को होमवर्क और पढ़ाई के लिए कम से कम 1 घंटे का समय भी जरूर देते हैं, बिना कोई भी पैसा काटे. किशोरों के अभिभावक ऐसे बिजनैस को प्रोत्साहन देने के लिए उन के नियमित ग्राहक हो जाते हैं. गरमी की छुट्टियों में किशोर और युवा पर्यटन स्थलों में गाइड्स और वाटर पार्क्स/स्विमिंग पूल्स में लाइफ गार्ड जैसी अल्पावधि के फुलटाइम जौब्स कर के पैसे जोड़ते हैं. ऐसे बिजनैस मुख्यतया युवा छात्रों के कंधों पर और उन्हें न्यूनतम दर का वेतन दे कर भारी मुनाफे में चलते हैं.

कई युवा ओपन माइंड रख कर अमेरिकी पीस कोर, रेडक्रौस या अन्य सहायता संगठन से संबद्ध हो कर विश्वभ्रमण करने निकल पड़ते हैं, इस आशा से कि अनुभव और दृष्टिकोण का विस्तार उन के वांछित विषय और कालेज के चयन में सहायक होगा. कई तो विकासशील देशों में किसी न किसी एनजीओ के साथ लंबे अरसे तक काम करते हैं और स्वदेश लौट कर स्नातक व स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने के बाद वर्ल्ड बैंक में अपना कैरियर ढूंढ़ लेते हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...