‘कौन कहता है कि आसमान में सूराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो...’ एक कविता की इन लाइनों को गुड्डू बाबा बिहार की राजधानी पटना में यथार्थ पर उतार रहे हैं. वे पूजापाठ वाले बाबा नहीं हैं, बल्कि उन की सफेद दाढ़ी और बालों की वजह से उन का घरेलू नाम गुड्डू ही गुड्डू बाबा के तौर पर मशहूर हो गया है. उन के नाम के साथ भले ही बाबा जुड़ा हुआ है लेकिन वे असल में ढोंगी बाबाओं की पोलपट्टी खोलने में लगे हुए हैं. वे गंगा नदी के साथसाथ उस से जुड़े पोंगापंथ की गंदगी को साफ करने और आबोहवा को बचाने की मुहिम में पिछले 17 सालों से दिनरात लगे हुए हैं.

सफेद झक बाल और दाढ़ी के साथ सफेद लिबास में उन की शख्सीयत को देख कर ही अंदाजा लग जाता है कि वे कुछ अलग ही किस्म के इंसान हैं और उन का काम भी औरों से अलग है. उन का असली नाम तो विकास चंद्र है लेकिन वे गुड्डू बाबा के नाम से मशहूर हैं. वे पूजापाठ के लिए बनी मूर्तियों समेत लावारिस लाशों को गंगा में बहाने के विरोध में पिछले 17 सालों से लड़ाई लड़ रहे हैं.

‘गंगा बचाओ अभियान’ संस्था बना कर वे साल 1998 से गंगा को पाखंड और आडंबरों से बचाने की मुहिम चला रहे हैं. वे बताते हैं कि 31 मई, 1999 का दिन था, वे गंगा में नाव में घूम रहे थे. अचानक ही पटना मैडिकल कालेज ऐंड हौस्पिटल के पिछले हिस्से में कुत्तों के भौंकने की आवाजें सुनाई पड़ीं. उन्होंने वहां पहुंच कर देखा तो हौस्पिटल के पोस्टमौर्टम रूम के पीछे कटीफटी लावारिस लाशें रखी हुई हैं और कुछ लोग उन लाशों को उठा कर गंगा नदी में फेंक रहे हैं. उसी दिन से उन्होंने गंगा को बचाने की लड़ाई शुरू करने की ठान ली.

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