राजस्थान में हकदारों को उन का हक नहीं मिल रहा है. उन की गुहार दब कर रह गई है. सरकार भले ही मेधावी छात्रछात्राओं को लैपटौप बांटने में जुटी हो लेकिन कुछेक होनहार छात्रछात्राओं को उपकृत करने की मुहिम के बीच स्कूलों में कंप्यूटर की तालीम गहरी नींद में है. प्रदेश सरकार बच्चों को कंप्यूटर की

तालीम दिलाने में किसी भी तरह का जोखिम नहीं ले रही है. बच्चों को कंप्यूटर सिखाने की जरूरत ही नहीं समझी जा रही है.

दिलचस्प बात यह है कि सरकारी स्कूलों के बच्चों को कंप्यूटर सिखाने का खेल बड़ी चतुराई के साथ खेला जा रहा है. इस चतुराई के चलते स्कूलों में रखे करोड़ों रुपए के कंप्यूटर या तो पूजाआरती करने की हालत में विराजमान हैं या फिर धूल के गुबार से बदरंग. प्रदेश के तमाम सरकारी स्कूलों के छात्र इस की तालीम से वंचित हैं. यह हाल तब है जब इस बदलते वैज्ञानिक व तकनीकी दौर में कंप्यूटर की शिक्षा बेहद जरूरी बन गई है.

सरकार की कथनी और करनी हमेशा अलगअलग क्यों होती है, यह बात समझ से परे है. पहले तो सरकार द्वारा एक कंपनी से अनुबंध कर स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा की अलख जगा दी गई. इस के बाद पता नहीं अलख कहां सोती रह गई. हां, गिरतेपड़ते स्कूलों में कंप्यूटर का पहुंचना तो शुरू हो गया लेकिन बाद में सरकार ने पलटी खाई और बच्चों को कंप्यूटर सिखाने व स्कूलों में कंप्यूटर पहुंचाने वाली कंपनी से अनुबंध तोड़ लिया.

इन सब के चलते सरकारी स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा के सरकारी दावे बौने साबित हुए हैं. हैरत की बात यह है कि बच्चों के कंप्यूटर शिक्षा से वंचित होने के बावजूद छात्रछात्राओं से हर साल कंप्यूटर शिक्षा की परीक्षाएं ली जा रही हैं. गौरतलब है कि सरकार ने खासतौर से 9वीं व 10वीं कक्षा के विद्यार्थियों को कंप्यूटर से जोड़ कर कंप्यूटर शिक्षा को बढ़ावा देने का सपना संजोया था. लेकिन प्रदेश के तमाम सरकारी स्कूलों में धूल खा रहे कंप्यूटर सरकार के इस सपने पर पानी फेरते नजर आ रहे हैं. इस से विद्यार्थियों को कंप्यूटर शिक्षा देने का मामला पूरी तरह अधर में है.

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