5 वर्षीय अभिषेक एक पब्लिक स्कूल में पहली कक्षा का छात्र है. 2 बजे स्कूल से आने के बाद 4 बजे तक वह खानापीना और आराम करता है. 4 बजते ही अपना स्कूल बैग उठा कर एक और स्कूल यानी ट्यूशन जाने के लिए तैयार हो जाता है. यह दिनचर्या सिर्फ अभिषेक की ही नहीं, बल्कि स्कूल जाने वाले हर आयु व कक्षा के छात्रों की है. जीवनशैली में बदलाव, अभिभावकों की बढ़ती अपेक्षाएं, उच्च कैरियर की आकांक्षा, अभिभावकों के पास समयाभाव ने ट्यूशन को बच्चों की दिनचर्या का एक आवश्यक अंग बना दिया है. लेकिन क्या सिर्फ उपरोक्त कारण ही ट्यूशन को एक जरूरी जरूरत बनाते हैं? ट्यूशन क्यों एक जरूरी जरूरत बन गई है? क्यों ट्यूशन के बिना हर अभिभावक व विद्यार्थी स्वयं को बेसहारा महसूस करता है? पल्लवी गुप्ता, जिन की बेटी राधिका दूसरी कक्षा में पढ़ती है, कहती हैं, ‘‘आज हर जगह इतना कंपीटिशन हो गया है कि बिना प्रोफैशनल सहयोग के बच्चों को आगे रखना बहुत ही मुश्किल हो गया है. परीक्षाएं, पाठ्यक्रम सभीकुछ इतना तनावपूर्ण है कि हर कदम पर एक मददगार की जरूरत पड़ती है. ऐसे में आज की पीढ़ी व अभिभावक दोनों ही एक ऐसा समस्यासाधक चाहते हैं जो उन्हें हर कदम पर हर समय पढ़ाई व कैरियर के क्षेत्र में मदद कर सके फिर चाहे वह रोजमर्रा का होमवर्क हो, स्कूली परीक्षाएं हों या नौकरी के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं. स्कूल द्वारा दिए गए होमवर्क, जो नएनए विषयों से भरे होते हैं, आम आदमी की समझ से बाहर होते हैं.’’

ट्यूटर ट्रबलशूटर

पहले जितनी अंगरेजी की जानकारी छठीसातवीं कक्षा के छात्र को होती थी आज उस से अधिक, अच्छी अंगरेजी एक नर्सरी का छात्र जानता है. अच्छे पब्लिक स्कूलों के छात्र ऐसी फर्राटेदार अंगरेजी बोलते हैं कि बड़ों में भी हीनभावना आ जाती है. ऐसे में बच्चों को समय के साथ हर जरूरी जानकारी देने, कक्षा में आगे रहने के लिए ट्यूशन एक मूलमंत्र बन गया है. ट्यूटर न केवल छात्रों को परीक्षाओं के लिए तैयार कराते हैं बल्कि रोज के कठिन होमवर्क से भी निजात दिलाते हैं. इन ट्यूटर की एक निश्चित कार्यशैली होती है जिस में निश्चित समय के अंदर कोर्स पूरा कराना, साप्ताहिक टैस्ट ले कर अच्छे अंक दिलाना उन का मुख्य ध्येय होता है. रश्मि जौहरी, जो स्वयं एक पत्रकार हैं, मानती हैं कि अपने बच्चों को एक जगह 1 घंटे के लिए बैठा कर पढ़ाना अपनेआप में एक समस्या है, ऊपर से कठिन पाठ्यक्रम की अधूरी जानकारी बच्चों के सामने अभिभावकों को अनपढ़ व अज्ञानी सिद्ध कर देती है. ट्यूशन भेजने से बच्चा गृहकार्य, अपनी परीक्षाओं के बारे में गंभीर रहता है और ध्यान से मन लगा कर बढ़ता है. रश्मि जब अपनी तीसरी कक्षा की बेटी को पढ़ाने बैठती थीं तो थोड़ी ही देर में परेशान हो कर झुंझला जाती थीं. ऐसे में केवल समय बरबाद होता था, कुछ परिणाम हाथ नहीं आता था. इसलिए थक कर उन्होंने अपनी बेटी को ट्यूशन पर भेजना शुरू कर दिया है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...