विकास इस बार भी इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा पास नहीं कर पाया. उस के सारे दोस्त अच्छेअच्छे कालेजों से पढ़ाई कर रहे थे, सिर्फ उसी का दाखिला नहीं हो पाया था. दरअसल, उसे इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कैरियर नहीं बनाना था. लेकिन उस के पापा चाहते थे कि उन का बेटा इंजीनियर बने. वे हमेशा विकास को डांटते थे कि ‘दिनभर बैठे बैठे समय गुजारता रहता है, यह नहीं कि थोड़ी मेहनत करे ताकि किसी अच्छे कालेज में दाखिला हो जाए.’

विकास थोड़ी देर के लिए भी पढ़ाई छोड़ कर टीवी देखता तो उस की मम्मी चिल्लाने लगती, ‘विकास, पढ़ाई कर ले, कुछ बन जा. देख, तेरे पापा की समाज में कितनी इज्जत है, उन का नाम मिट्टी में मिलाएगा क्या?’

विकास के घर वाले हमेशा उसे इंजीनियरिंग की परीक्षा पास नहीं कर पाने के लिए कोसते रहते थे. पर उन में से किसी ने भी उस की उस खास प्रतिभा की तरफ ध्यान नहीं दिया जिस में उस की रुचि थी और जिस में वह मास्टर था. दरअसल, उस के पापा को लगता था कि पेंटिंग भी कोई कैरियर है. इसे तो वे लोग करते हैं जो पढ़ाई में कमजोर होते

हैं, जो जीवन में कुछ भी नहीं कर पाते. उन का बेटा कमजोर नहीं है, वह तो एक सफल इंजीनियर बनेगा. इसी सोच की वजह से वे हमेशा विकास पर दबाव बनाते थे.

हम में से अधिकांश मातापिता ऐसा ही करते हैं. बच्चों के कपड़े व खिलौनों की तरह उन का कैरियर भी स्वयं ही तय करना चाहते हैं. फिल्म ‘3 इडियट्स’ का एक संवाद काफी प्रभावशाली है ‘‘बच्चे के पैदा होते ही उस का कैरियर तय कर दिया जाता है -- लड़का हुआ तो इंजीनियर और लड़की हुई तो डाक्टर. कोई बच्चे से भी तो पूछ कर देखे कि उसे क्या बनना है?’’

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