ऐसे दौर में जब बच्चे मांबाप की बात नहीं मानते, छात्र अध्यापकों की बात नहीं सुनते, कर्मचारी अपने मालिकों की बात एक कान से सुन कर दूसरे कान से निकाल देते हैं, उस दौर में भी धर्मभीरु मुसलिम समाज मध्यकालीन सोच वाले मुल्लाओं के फतवों को मान कर अपनी रोजमर्रा की जिंदगी को तो मुश्किल में डालते ही हैं, ऊपर से हंसी का पात्र भी बनते हैं. लोग कहते हैं कि जब दुनिया रौकेट की रफ्तार से सफर कर रही है, उस दौर में मुसलिम समाज फतवों में फंस कर रेंग रहा है. पिछले दिनों ऐसा ही कुछ देखने को तब मिला जब हिंदुस्तान के मुसलिमों के सब से बड़े मदरसे दारुल उलूम, देवबंद की तरफ से दाढ़ी व शेविंग के संदर्भ में एक फतवा आया. फतवे तो हमेशा आते रहे हैं मगर इन दिनों अगर वे देशव्यापी बहस का मुद्दा बन जाते हैं तो इसलिए क्योंकि सोशल मीडिया महज कुछ घंटों में उन्हें देश के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचा देता है. इस फतवे के चलते भी सोशल मीडिया व अन्य मंचों पर जबरदस्त बहस छिड़ गई.

हालाकि फतवा शरीअत में ऐसी राय को कहते हैं जो प्रश्नकर्ता के सवाल पर मुफ्ती ए इसलाम अपने ज्ञान की रोशनी में देते हैं. इसे मानना या न मानना आवश्यक नहीं होता क्योंकि यह काजी न्यायाधीश का फैसला नहीं होता है. लेकिन आम मुसलिम इसे धार्मिक आदेश के रूप में ही देखता और समझता है. देवबंद के महल्ला बाड़ा जियाउल हक निवासी मुहम्मद इरशाद व मुहम्मद फुरकान ने अपने फ्रैंड्स हेयर कटिंग सैलून की तरफ से यह फतवा मांगा था कि दाढ़ी मूंडना व शेव बनाना इसलाम में हलाल यानी वैध है? उन्होंने यह भी पूछा था कि क्या इस से की गई कमाई हलाल है? इस पर दारुल उलूम के मुफ्ती वकार अली, मुफ्ती जैनुल कासमी और मुफ्ती फखरुल इसलाम ने फतवा दिया कि इसलाम में दाढ़ी मुंडवाना व शेविंग कराना हराम है. यही नहीं, उन के मुताबिक इस से जो आमदनी होती है वह भी हराम है. फतवे के अनुसार, शेविंग चाहे मुसलिम की की जाए या हिंदू की, वह गैरइसलामी है. इस शेविंग से होने वाली आमदनी भी हराम है. हालांकि मुहम्मद इरशाद व मुहम्मद फुरकान ने तो इस फतवे को स्वीकार करते हुए इसे फ्लैक्स बोर्ड में लिखवा कर अपने सैलून पर लगा दिया, साथ ही उन्होंने सार्वजनिक घोषणा भी कर दी कि आइंदा से वे शेविंग नहीं करेंगे, सिर्फ खत व बाल ही बनाएंगे, लेकिन नाई के पेशे से जुड़े अन्य लोगों ने इस फतवे पर गंभीर आपत्ति व्यक्त की है.

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