अमिताभ बच्चन, ई श्रीधरन, सुनील गावस्कर, जावेद अख्तर और गुलजार में आखिर क्या समानता है? दरअसल, ये सभी अपने प्रारंभिक कैरियर में बेहद सफलता पाने के बाद अपनी दूसरी पारी में भी पहले से कहीं कम नहीं रहे. 70 और 80 के दशक में अमिताभ बच्चन एंग्रीयंग फार्मूले में सफलता के पर्याय थे तो नायक न रहने के बाद भी उन का रुतबा किसी महानायक से कम नहीं है. अपनी पहली पारी में जहां उन्होंने बड़े परदे पर धमाल मचाया वहीं दूसरी पारी में उन्होंने बड़े परदे के साथसाथ छोटे परदे पर भी खूब धूम मचाई है.

यही हाल ई श्रीधरन का रहा है. दूसरी पारी के भी शीर्ष को छू कर अब वे आराम फरमा रहे हैं. दिल्ली मैट्रो के सफल और सुचारु संचालन से उन्होंने भारतीय कामगार संस्कृति को ही बदल कर रख दिया है. इसी श्रेणी में जहां इन्फोसिस के एन नारायणमूर्ति और नंदन नीलकेणी को भी रखा जा सकता है वहीं सुनील गावस्कर की कामयाब कमैंट्री को देखते हुए और लंबे समय तक कहानीकार रहने के बाद गीतकार के रूप में और गीतकार से अब असम विश्वविद्यालय में चांसलर की भूमिका में पहुंचने वाले गुलजार को भी रखा जा सकता है.

दरअसल, हम पूरी दुनिया में मचे इस शोर के बीच कि भारत युवाओं का देश है, यह भूल जाते हैं कि भारत हाल में ही सीनियर सिटीजन में शुमार हुए ऊर्जा से भरे जवानबूढ़ों का भी देश है. जी हां, इस में कोई दोराय नहीं कि हिंदुस्तान इस समय सब से युवा देश है और हिंदुस्तान ही नहीं हिंदुस्तान के दोनों टुकड़े, जो अब अलगअलग देश यानी पाकिस्तान और बंगलादेश के रूप में अस्तित्व रखते हैं, भी पूरी तरह से हिंदुस्तान की ही तरह युवा देश हैं. भारत में युवा और किशोरों की साझा आबादी 65 करोड़ के आसपास है जो दुनिया में सब से ज्यादा तो है ही, दुनिया के 4 बड़े देशों अमेरिका, रूस, कनाडा और आस्ट्रेलिया की कुल आबादी से भी कहीं ज्यादा है. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत किस कदर युवाओं का देश है. यहां हर साल 30 लाख ग्रेजुएट, पढ़ीलिखी दुनिया में अपना नाम दर्ज कराते हैं और आने वाले सालों में इस संख्या में इजाफा होना तय है.

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