आज का युवा कल का भविष्य है, लेकिन इस युवा की दशा और दिशा गढ़ने वाले स्कूलकालेज आज स्वयं ही प्रश्न के दायरे में हैं. पिछले कई सालों से देखा जा रहा है कि छात्र कालेज जाते ही नहीं हैं. क्लासरूम में छात्रों की उपस्थिति मात्र 15 से 20% देखी गई है. इस से भी बड़ी दुख व चिंता की बात यह है कि भविष्य के इन सृजनकर्ताओं के हाथों में सृजन संसार के निर्माण में सहायक किताबों की भूमिका ही गायब है. किताबों की जगह मोबाइल ने ले ली है.

स्कूलकालेजों में युवाओं के हाथों से किताबें धीरेधीरे दूर होती जा रही हैं. यहां तक कि कई स्थानों पर छात्र परीक्षाएं भी बिना किताबों के ही दे रहे हैं. कहने को तो  वे बड़ीबड़ी डिग्रियां हासिल कर रहे हैं, नौकरियां भी पा रहे हैं लेकिन चिंता की बात यह है कि भले ही हाथ में बड़ी डिग्रियां हों, लेकिन किताबों का साथ छूटता जा रहा है. अब उन के हाथ में एक कौपी और गाइड होती है. टैक्स्ट बुक को न पढ़ कर विद्यार्थी गाइड पढ़ना पसंद करते हैं, क्योंकि उस में सभी उत्तर भी मिल जाते हैं और मेहनत भी नहीं करनी पड़ती.

टैक्स्ट बुक से दूरी, गाइड जैसी हैल्प बुक से प्रेम के लिए जिम्मेदार भी टीचर्स और छात्र दोनों हैं. छात्र टैक्स्ट बुक पढ़ते समय अध्यापक से अच्छी हैल्पबुक की राय भी लेते हैं. कहीं टीचर्स हैल्पबुक्स बताने में पूरी रुचि दिखाते हैं तो कहीं छात्र को टैक्स्ट बुक्स पढ़ने की ही सलाह दी जाती है. जब विकल्प मौजूद हैं तो छात्र दिमाग लगाना पसंद नहीं करते. वे इन किताबों के जरिए परीक्षाएं पास तो जरूर कर लेते हैं लेकिन उन का ज्ञान नहीं बढ़ता. आगे चल कर वे ऐसे ही शौर्टकट रास्ते के द्वारा अन्य परीक्षाएं भी पास कर लेना चाहते हैं लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिलती.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...