नार्वे के यूनिवर्सिटी औफ बर्गेन के शोधकर्त्ताओं ने हाल ही में 16,426 लोगों पर किए गए अपने अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला कि अत्यधिक काम करने वालों में ध्यानाभाव (अटेंशन डेफिसिट) और अतिसक्रियता बीमारी (हाइपर एक्टिविटी डिसऔर्डर) का खतरा दूसरों की अपेक्षा 20% ज्यादा रहता है. इन में ओसीडी (औब्सेसिव कंपलसिव डिसऔर्डर) की आशंका भी तकरीबन 17% अधिक रहती है. दुश्चिंता 22% तक और अवसादग्रस्त होने की संभावना 9% तक ज्यादा रहती है यही नहीं, शारीरिक समस्याओं, उच्च/निम्न रक्तचाप, माईग्रेन, वगैरह भी होने की आशंका रहती है.

जिंदगी में काम जरूरी है पर एक सीमा तक. कहीं ऐसा न हो कि काम के बोझ तले आप जीवन की वास्तविक पूंजी से हाथ धो बैठें. पैसा कमाने, सब से बेहतर कर के दिखाने और दूसरों को खुश रखने की जद्दोजेहद में अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर बैठें. मन और तन का गहरा संबंध होता है. मन स्वस्थ है तभी तन स्वस्थ है.

यह जरूरी है कि काम करें तो पूरी तरह मन को केंद्रित कर के अपनी क्षमता क पूरा उपयोग करते हुए करें, मगर जरूरी यह भी है कि अपने मन की खुशी का भी खयाल रखें. उस पर इतना ज्यादा दबाव भी न डालें कि वह अवसादग्रस्त हो जाए और उसे रोग घेर लें.

औफिस में काम का दबाव

बी.एल.के सुपर स्पैशिएलिटी हौस्पीटल, नई दिल्ली के डा. एस सुदर्शनन कहते हैं कि हम जीवन का लंबा समय अपने कार्यस्थल पर बिताते हैं, इसलिए वहां का माहौल हमारे शारीरिक और मानसिक दृष्टि से बहुत महत्त्व रखता है. कार्यस्थल में काम के प्रेशर और मानसिक दबाव के कारण कार्य करने वाला व्यक्ति कई दफा औफिस में न हो कर भी तनावग्रस्त ही रहता है. इस समस्या का व्यक्ति के सामाजिक विशेष रूप से परिवार के सदस्यों के साथ संबंधों पर नकारात्मक असर पड़ता है. काम के दबाव के अलावा कार्यस्थल का माहौल भी व्यक्ति के मानसिक रूप से रोगग्रस्त होने का कारण बन सकता है. कार्यस्थल पर व्यक्ति को प्रतिदिन कई तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, जिस से उन का मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है. जैसेः

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