शीर्षक देख कर किसी का भी चौंकना स्वाभाविक ही है कि ऐसा कैसे हो सकता है? अभी तक तो यही सुनते आए हैं कि बुरे काम का नतीजा भी बुरा ही होता है. इसलिए हर व्यक्ति को बुरे कामों से बचने की सलाह दी जाती है, उन के नुकसान गिनाए जाते हैं. लेकिन यकीन मानें, बुरे काम का नतीजा अच्छा भी हो सकता है बशर्ते इस से सबक लिया जाए, इस के नुकसान देखे जाएं, फिर चाहे वे खुद के हों या किसी और के. अगर यह समझ आ जाए कि किसी दूसरे के नुकसान से मेरा कोई भला या फायदा नहीं होने वाला तो तय है आप खुद के बुरे के प्रति भी सचेत हो जाएंगे.

18 वर्षीय अभिजीत एक शाम जब दोस्तों के साथ कोचिंग में पढ़ाई कर के बाहर निकला तो सामने गली में गोलगप्पे वाले का ठेला देख ललचा गया. चारों दोस्तों ने तय किया कि घर जाने से पहले गोलगप्पे खाए जाएं.

जेब में पैसे तो थे ही, बातें करतेकरते चारों पहुंच गए ठेले पर और हाथ में प्लेट ले कर यहांवहां की गपें हांकते गोलगप्पे खाने शुरू कर दिए. बातोंबातों में शर्त लग गई कि कौन कितने गोलगप्पे खा सकता है? शर्त के नाम पर अभिजीत की बांछें खिल गईं और वह डींग मारता बोला, ‘‘सब से ज्यादा मैं खाऊंगा.’’

उधर, उस का सहपाठी अरमान भी जोश में था सो चैलेंज दे दिया कि नहीं मैं ज्यादा खाऊंगा. तय हुआ कि जो शर्त हारेगा वह पेमैंट करेगा. बस, फिर क्या था, देखते ही देखते दोनों भरभर कर गोलगप्पे गटकने लगे.

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