मेरा न्यायिक जीवन शुरू ही हुआ था कि न्यायालय में एक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हुई जिस की कल्पना करना मेरे लिए क्या, किसी भी साधारण बुद्धि के व्यक्ति के लिए संभव नहीं लगता था. उस परिस्थिति से मेरे अनुभव की माला में एक कड़ी जरूर जुड़ गई थी, जिस का लाभ मुझे लगातार मिलता रहा. न केवल न्यायिक कार्यों में, बल्कि जीवन के हर कदम पर. मुझे तब तक न्यायिक कार्यों के विषय में ज्यादा ज्ञान भी नहीं हो पाया था. मैं लगातार सीखने का प्रयास कर रहा था. वरिष्ठ, योग्य व अनुभवी अधिवक्ताओं का महत्त्वपूर्ण सहयोग भी मुझे प्राप्त हो रहा था कि एक दिन मेरे समक्ष एक 30 वर्षीय महिला द्वारा अपने पति के खिलाफ दंड प्रक्रिया संहिता धारा 125 के तहत भरणपोषण भत्ते की याचना के साथ दायर किया गया मुकदमा सुनवाई के लिए प्रस्तुत हुआ. महिला ने अपने कथन को साबित करने के लिए खुद को परीक्षित किया. उस का कथन खुद मेरे द्वारा लेखबद्ध किया गया. उस कथन में महिला द्वारा वे सभी आरोप लगाए गए जोकि आमतौर पर ऐसे प्रकरणों में लगाए जाते हैं. महिला ने बड़ी ही दर्दभरी आवाज में कहा था कि उस का पति बहुत ही निर्दयी है. छोटीछोटी बात पर उस को मारतापीटता है. न भोजन देता है न ही कपड़ा. वह बहुत ज्यादा शराब पीता है. दूसरी महिलाओं के साथ उस के अनैतिक संबंध हैं. अब पति से उसे अपने जीवन पर भी खतरा हो गया है. दोनों का पतिपत्नी के रूप में रहना अब असंभव हो गया है.

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