भूकंप के बाद नेपाल की राजधानी काठमांडू की सड़कों और गलियों के भयावह मंजर मानो चीखचीख कर कह रहे थे कि ‘अब भी चेत जाओ वरना जान और माल गंवाने के लिए तैयार रहो’. शहर के कोटेश्वर महल्ले के ज्यादातर घर कब्रमें तबदील हो चुके हैं. नेपाल के कई लोगों से बातचीत के बाद इस नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि नेपालियों ने नेपाल की प्राकृतिक खूबसूरती का जम कर दोहन किया लेकिन उस के बदले में देश को कुछ दिया नहीं. जिस देश की 52 फीसदी कमाई प्राकृतिक नजारों, ऐतिहासिक इमारतों और विदेशी पर्यटकों से होती है,वहां उसे संजो कर रखने की न कोई मंशा है और न ही सरकार की कोई ठोस योजना. पहाड़ों और जंगलों के लिए दुनियाभर में मशहूर नेपाल आज कंक्रीट के बेतरतीब जंगल में बदल चुका है जिस का खमियाजा तो उसे भुगतना ही होगा.
काठमांडू, भक्तपुर, ललितपुर, पोखरा, लुम्बिनी, तिलोत्तमा, भैरवा, बुटवन आदि इलाकों में पर्यटकों की भरमार रहती है. हर साल 8 से 9 लाख विदेशी पर्यटक नेपाल घूमने आते हैं. इन पर्यटकों से नेपालियों को भारी कमाई होती है. लेकिन अब तसवीर बदल चुकी है. पोखरा घूमने आए नागपुर के पर्यटक संजीव कुमार कहते हैं कि वे पोखरा में बडे़ पैमाने पर छोटेछोटे गैस्टहाउस और पेइंग गैस्टहाउस खुले हुए हैं. वहां तकरीबन हर घर छोटा गेस्टहाउस बना हुआ है. गेस्टहाउस वाले पर्यटकों को ठगने और लूटने के धंधे में लगे हुए हैं.
ठगी और लूट
संजीव बताते हैं, ‘‘जब मैं पोखरा बस अड्डे पर उतरा तो सैकड़ों की तादाद में टैक्सी वालों ने घेर लिया. कोई 300 रुपए में गेस्टहाउस, कोई 200 रुपए में गैस्टहाउस...चिल्ला रहा था. बस से उतरे कई पर्यटकों का जबरन सामान ले कर वे अपनी टैक्सी में रख लेते हैं. मेरा भी सूटकेस ले कर एक टैक्सी वाले ने अपनी टैक्सी में रख लिया और मुझे गैस्टहाउस पहुंचा दिया. गैस्टहाउस में 3 दिन ठहरा और रात को जब वहां से निकलने लगा तो बिल लाने के लिए कहा. बिल देख कर तो मेरा सिर चकरा गया. 300 रुपए रोजाना किराए की बात हुई थी और बिल 800 रुपए रोज के हिसाब से बनाया गया था. इस बारे में पूछने पर गेस्टहाउस मालिक कुछ भी सुनने को तैयार नहीं था. टैक्सी वाला ही मकानमालिक यानी गेस्टहाउस का मालिक था और वह शराब के नशे में था. जब मैं ने उस से कहा कि 300 रुपए किराया बताया गया था पर 800 रुपए का बिल क्यों बनाया, तो उस ने छूटते ही कहा, ‘‘अगर 800 रुपए किराया बताया जाता तो आप आते ही नहीं. यह तो बिजनेस ट्रिक है.’’