एक वक्त था जब वेश्यावृत्ति स्त्रियों से जुड़ा पेशा माना जाता था. चूंकि कमनीय देह की स्वामिनी सिर्फ स्त्रियां होती थीं और चंचलता, नजाकत, शोखी, यौन अपील जैसे कामुक विशेषण स्त्रियों की देह के साथ जुड़े होते थे, लिहाजा यह सर्वसम्मत राय थी कि देह का व्यापार सिर्फ स्त्रियां कर सकती हैं. उन के पास पुरुषों की यौनलिप्सा पूर्ण करने वाली मांसल देह है और बिकना उन्हें ही है जो स्थापित यौन बजार में बिकने योग्य हों.

देह व्यापार के स्थापित उद्योग में अब पुरुष भी अपने देहरूपी मौडल के डिसप्ले के लिए तैयार हैं. स्त्री देह व्यापार की इस मजबूत घेराबंदी में पुरुष ने भी सेंध लगानी शुरू कर दी है. अरसे से एकछत्र राज कर रही महिलाओं के इस बाजार में पुरुषों ने भी सेंध लगाना शुरू कर दिया है.

सवाल यह है कि क्या पुरुषों ने महिलाओं की इस सत्ता को हथिया लिया है? इस का अंदाजा हम पुरुष वेश्यावृत्ति के धंधे में दिनोंदिन पुरुषों की बढ़ती संख्या से लगा सकते हैं. बाजार मांग के अनुसार, पुरुष देह की नुमाइश लगातार जारी है. यह अंतर इतनी जल्दी नहीं आया है. इस एकाधिकार को सुंदर, सजीले और आकर्षक व्यक्तित्व वाले गठीले पुरुषों ने आसानी से नहीं तोड़ा.

दरअसल, उदारवादी और विकासवादी विचारधारा ने कभी न प्रदर्शित होने वाली सैक्स उत्कंठा को बाजार की जरूरत बना दिया. बदलते वक्त के साथ यौनइच्छा जैसी वर्जनात्मक भावनाएं भी खुल कर सामने आई हैं. समृद्धि, संपन्नता और संभ्रांतता ने इसे और ज्यादा व्यावसायिक बनाया है. सामाजिक वर्जनाओं के चलते दबा कर रखी जाने वाली स्त्रियों की कामेच्छा ने अब प्रत्यक्ष रूप से पुरुष वेश्यावृत्ति के व्यवसाय को विस्तारित किया है.

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