‘‘सभी भोपाली सतर्क रहें, पिछले 24 घंटों में 4 और स्कूली बच्चे गायब हो गए हैं, 2 बच्चे दिल्ली पब्लिक स्कूल से, 1 सैंट जेवियर स्कूल से और 1 लिटिल फ्लावर स्कूल से. कृपया अपने बच्चे का ध्यान रखें.’’ 20 अगस्त को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में यह मैसेज इस तरह वायरल हुआ कि शायद ही कोई सैलफोन इस से अछूता रहा हो. एक हफ्ते में एक शहर से 5 स्कूली बच्चों के गायब हो जाने से शहर का माहौल बदल गया था. जिन के यहां छोटे बच्चे हैं उन्हें रिश्तेदार, जानपहचान वाले व शुभचिंतक फोन कर के भी हिदायत दे रहे थे कि बच्चों का ध्यान रखना. शहर में बच्चा चोरों का गिरोह सक्रिय है. भोपाल शहर संवेदनहीन नहीं है. यह तो सोशल मीडिया पर गुमशुदा बच्चों की चिंता से जाहिर हुआ, लेकिन बच्चों को ले कर जो दहशत फैल चुकी थी उस का इलाज किसी के पास नहीं था. आलम यह था कि चौराहों, बाजारों, कालोनियों, महल्लों और अपार्टमैंट्स में एक ही चर्चा, गुम होते बच्चे और निशांत का हफ्तेभर बाद भी कोई पता न चलना, थी.

दहशत और अफवाहों में सब से ज्यादा चर्चा में निशांत झोपे रहा. 10 वर्षीय 5वीं कक्षा का यह मासूम 14 अगस्त को सुबह सवा 7 बजे घर से स्कूल जाने के लिए निकला था पर स्कूल से वापस नहीं लौटा था. साकेत नगर इलाके के मकान नंबर बी-9, 133 में 21 अगस्त को मातम पसरा था. निशांत को प्यार से निशु कह कर बुलाने वाले उस के पिता दीपक झोपे बदहवास सी हालत में थे. बात करने पर जैसेतैसे खुद को संभालते हुए उन्होंने कहा, ‘‘अब तो समझ ही नहीं आ रहा कि निशु को कहां जा कर तलाश करूं, जहांजहां मुमकिन था ढूंढ़ लिया. पुलिस को भी अब तक कोई सुराग नहीं मिला है.’’ ये 3 वाक्य बोलने के बाद उन का गला भर आया. इस दिन भोपाल के 40 थानों के प्रभारी सहित कोई 200 पुलिसकर्मी निशांत को तलाश रहे थे. प्रदेशभर के जिलों के थानों में उस की फोटो भेज दी गई थी. यह तो पुलिसप्रशासन स्तर की बात थी लेकिन निशांत को ढूंढ़ने में भोपाल के लोग भी दिनरात एक किए हुए थे. वाट्सऐप, फेसबुक और टैक्स्ट मैसेज के जरिए लाखों लोग निशांत और दूसरे लापता बच्चों की बात कर रहे थे.

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