बोनसाई ऐसा वृक्ष होता है जिसे एक छोटे पात्र में उगा कर परिपक्व बना दिया जाता है. बोनसाई छोटे पात्रों में सजावटी वृक्षों या झाड़ियों को उगाने की एक कला है जिस में उन की वृद्धि को बाधित कर दिया जाता है. पौधा उगाने की इस विशेष पद्धति में ट्रे जैसे कम ऊंचाई के गमले या किसी अन्य पात्र में पौधे को उगाया जाता है और उस की समयसमय पर कटाईछंटाई कर के उस की वृद्धि को रोका जाता है. सालों की मेहनत के बाद जा कर कोई पौधा बोनसाई वृक्ष बनता है.

बोनसाई का उद्देश्य खाद्य या औषधीय उत्पादन नहीं होता. ये आनुवंशिक रूप से बौने पौधे भी नहीं होते (जोकि एक भ्रांति है). किसी भी पादप जाति के पौधे का बोनसाई विकसित किया जा सकता है. बोनसाई उगाने की तकनीक में टहनियों की छंटाई, जड़ों को छोटा करना, पात्र बदलना और पत्तियों को छांटने जैसी गतिविधियां एक निश्चित अंतराल पर करनी होती हैं.

बोनसाई पौधे उगाना कम खर्चीला और अधिक रोचक काम होता है. अपनी पसंद के पौधे को चुन कर उसे बोनसाई वृक्ष में विकसित करना अपनेआप में एक अनोखा अनुभव होता है. बोनसाई दरअसल पौधा उगाने की एक असामान्य विधि होती है जिस में बीज से बोनसाई का विकास नहीं होता बल्कि एक परिपक्व पौधे या उस के किसी हिस्से से इसे विकसित किया जाता है.

खुले मैदान या बागीचे में उगने वाले पेड़ अपनी जड़ों को भूमि के नीचे कई मीटर तक बढ़ा कर विकसित कर पाते हैं क्योंकि उन के विकास में कोई बाधा नहीं होती. इस के अलावा प्राकृतिक आवास में विकसित पेड़, सैकड़ों से ले कर हजारों लिटर पानी अपनी जड़ों के द्वारा अवशोषित कर जाते हैं. मगर बोनसाई के मामले में आम पेड़ों की इन दोनों ही आजादियों पर प्रश्नचिह्न लगा दिया जाता है. चूंकि इन पेड़ों का आकार छोटा रखना होता है इसलिए इन्हें छोटे पात्रों में उगाया जाता है और छोटे पात्र में इन की जड़ों को अपने पांव पसारने के लिए भूमि और मिट्टी नहीं मिल पाती व जड़ छोटी होती है जिस कारण ये अधिक पानी का अवशोषण भी नहीं कर पाते.

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