पारिवारिक बंटवारा जज्बाजी तौर पर तो तकलीफदेह होता ही है लेकिन वक्त रहते न हो तो जायदाद के लिहाज से भी नुकसानदेह साबित होने लगता है जैसा कि भोपाल रियासत के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान के वारिसों के बीच हो रहा है.  तकरीबन 1 हजार करोड़ रुपए की जायदाद के बंटवारे को ले कर मामला फिर अधर में लटक गया है और ऐसा लग भी नहीं रहा कि यह जल्द सुलझ पाएगा.

 इस दफा तीसरी पीढ़ी के वारिसों के अहं, महत्त्वाकांक्षाएं, पूर्वाग्रह, जिद और लालच आड़े आ रहे हैं. मौजूदा जायदाद के 7 वारिसों में से कोई भी समझौता करने के मूड में नहीं दिख रहा. सो, गेंद अब अदालत और सरकार के पाले में है. इस लड़ाई से नवाब मंसूर अली खान उर्फ नवाब पटौदी की बेगम आयशा सुल्तान यानी अपने जमाने की मशहूर फिल्म ऐक्ट्रैस शर्मिला टैगोर की अदालत के बाहर समझौता कर जायदाद बांट लेने की कोशिशों को तगड़ा झटका लगा है और इस दफा यह झटका देने वाले कोई और नहीं उन के ही बेटे बौलीवुड के कामयाब अभिनेता सैफ अली खान हैं, वरना वे अपनी मंशा में कामयाब होती दिख रही थीं.

क्या है फसाद

भोपाल रियासत की त्रासदी या खूबी यह रही है कि यहां अधिकांश वक्त बेगमें काबिज रहीं जो कोई हर्ज की बात न थी पर अब जिस तरह बंटवारे का मसौदा और मामला उलझ रहा है उसे देख लगता है कि पुरुष बेहतर तरीके से बंटवारे को अंजाम दे सकते हैं, फिर चाहे वे मध्यवर्गीय परिवारों के हों, रियासतों के हों या रजवाड़ों के.

1926 में भोपाल के आखिरी नवाब हमीदुल्लाह खान ने रियासत संभाली थी.  हमीदुल्लाह के चूंकि कोई बेटा नहीं था, इसलिए उन्होंने अपनी मंझली बेटी साजिदा सुल्तान को शासक नियुक्त कर दिया था. कायदे से यह जिम्मेदारी उन की बड़ी बेटी आबिदा सुल्तान को मिलती पर वे शादी करने के बाद अपने बेटे शहरयार के साथ पाकिस्तान जा कर बस गईं. छोटी बेटी राबिया सुल्तान भी अपनी ससुराल में चली गईं.

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