जब हम गांवों से किसी बड़े शहर में आते हैं तो हमारे पास सपनों और इच्छाओं के सिवा कुछ नहीं होता. एक नए शहर में आ कर सपनों को साकार करने की कोशिश में सब से पहले हमें एक सुरक्षित आशियाने की तलाश रहती है. पर शहरों की बढ़ती आबादी ने एक ठिकाने की तलाश को न केवल मुश्किल बना दिया है बल्कि महंगा भी कर दिया है. यही वजह है कि एक ही फ्लैट या कमरे को 3-4 लोग मिल कर शेयर करते देखे जा सकते हैं.

जरूरी नहीं कि वे सब आपस में एकदूसरे को पहले से ही जानते हों. यह बिलकुल वैसा ही है जैसे हम स्कूल या कालेज के होस्टल में रहते थे, बस, फर्क इतना है कि कालेज के होस्टल की जिम्मेदारी वार्डन पर होती थी जबकि यहां हमें रहने और खाने की जिम्मेदारी खुद उठानी होती है. ग्रुप में रहने का यह तरीका न केवल सस्ता है बल्कि हमारी कई तरह की परेशानियों का हल भी है.

ग्रुप में युवकयुवतियां या केवल युवतियां या फिर केवल युवक भी हो सकते हैं. ये अलगअलग शहरों या प्रदेशों से आए हुए अलगअलग धर्म, संस्कृति या भाषा के भी हो सकते हैं. आपसी समझदारी और सामंजस्य के साथ शहरों में युवा अपने सपनों को साकार करने में जुट जाते हैं.

यहां मुश्किल तब आती है जब हम अपनी पुरानी आदतों से पीछा नहीं छुड़ा पाते और दूसरे दोस्तों के साथ सामंजस्य बैठाने में असमर्थ रहते हैं. हमारे बीच की छोटीमोटी मतभिन्नता कब गंभीर रूप ले लेती है, पता ही नहीं चलता. इस का परिणाम यह होता है कि ग्रुप में लड़ाईझगड़े या मनमुटाव हो जाता है और फलत: ग्रुप टूट जाते हैं.

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