भारत के पब्लिक स्कूलों में समृद्ध परिवारों की लाड़ली संतानें उत्तम शिक्षा प्राप्त करती हैं जबकि अमेरिका की सघन आबादी वाले शहरों में पब्लिक यानी सरकारी स्कूल सिस्टम के तहत संचालित स्कूलों में अधिकतर साधारण वर्ग की संतानें शिक्षित की जाती हैं. अमेरिका में स्कूली आयु के हर बच्चे को निकटवर्ती स्कूल में भरती करवाना कानूनन अनिवार्य है जिस के लिए उसे निशुल्क बस सेवा, मुफ्त या केवल प्रतीकमात्र दर पर लंच (कई स्कूलों में सुबह का नाश्ता भी), फील्ड ट्रिप्स और कई सुविधाएं उपलब्ध हैं. कुछ कर्तव्यनिष्ठ अभिभावक स्कूलों में यथासंभव योगदान करते हैं. शारीरिक या मानसिक रूप से बाधित बच्चों के लिए विशेष शिक्षा का प्रावधान है जिस के लिए विशेष ट्रेनिंगप्राप्त शिक्षक तो होते ही हैं, उन बच्चों को बाथरूम वगैरा ले जाने,  उन के डायपर तक बदलने के लिए सहायक नियुक्त किए जाते हैं. हर स्कूल के उपचार कक्ष के लिए फुल नहीं तो पार्टटाइम नर्स अवश्य होती हैं.

सरकारी खर्च पर पढ़ाई

लौटरी सिस्टम के जरिए बच्चे अपने रिहाइशी क्षेत्र से दूर अपने पसंदीदा स्कूल में भी सरकारी खर्च पर पढ़ने जा सकते हैं. सर्वधर्म, समभाव के नजरिए से देखें तो अमेरिका अति संवेदनशील व निरपेक्ष है. पब्लिक स्कूल सिस्टम में किसी धर्मविशेष की शिक्षा निषिद्ध है. सवेरे प्रार्थनासभा का नियम नहीं, विशेष अवसरों पर देशभक्ति की शपथ का सामूहिक उच्चारण होता है. विभिन्न धार्मिक संप्रदायों द्वारा डार्विन के विकास सिद्धांत पर उठाए गए विवाद के कारण सरकारी स्कूलों में अब इस की शिक्षा निषिद्ध है. डार्विन के सिद्धांत को अलग तरह से केवल जानकारी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. धर्मपरायण ईसाई, यहूदी आदि संप्रदायों के लोग अपनी संतान की धर्मनिष्ठा को दृढ़ रखने के लिए स्वेच्छा से महंगी फीस दे कर उन्हें प्राइवेट धार्मिक स्कूलों में भेजते हैं.

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