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‘‘मेरे भाई,’’ प्रणय ने उसे समझाना चाहा, ‘‘क्यों तुम अपनी बहन की खातिर अपना जीवन बरबाद करना चाहते हो. तुम्हारी बहन को अच्छा लड़का मिल ही जाएगा. मैं खुद भी उस के लिए वर खोजूंगा, बल्कि एक लड़का तो मेरी नजर में है भी.’’

प्रणय घर लौट कर सोचने लगा कि कुछ भी हो, सोनाली की शादी तो वह करा कर ही रहेगा. इस काम का बीड़ा उठाया है तो पूरा कर के रहेगा.

अगले रोज जब प्रणय मनपसंद कार्यालय के करीब पहुंचा तो दरबान ने उसे घूर कर देखा.

करीब एक घंटे बाद उस ने देखा कि एक लंबाचौड़ा कद्दावर इंसान मनपसंद की ओर बढ़ रहा है. प्रणय सोचने लगा, ‘वाह, यदि यह शिकार फंस जाए तो क्या कहने, सोनाली के मांबाप मेरे चरणों में बिछ जाएंगे. खुद सोनाली भी उम्रभर मेरा आभार मानेगी.’

‘‘भाईसाहब,’’ वह फुसफुसाया.

युवक ठिठक गया, ‘‘कहिए?’’

प्रणय ने सोनालीपुराण शुरू किया तो युवक भड़क उठा, ‘‘क्या कह रहे हैं आप? मैं यहां लड़कियों की खोज में नहीं आया. मैं शादी कर के बाकायदा घर बसाना चाहता हूं.’’

प्रणय ने दांतों तले जीभ काटी, ‘‘आप मुझे गलत समझ रहे हैं. मैं भी शादी की ही बात कर रहा हूं.’’

उस ने अपनी बात का खुलासा किया तो युवक चुपचाप सुनता रहा. वे दोनों उस इमारत से बाहर निकले और चौपाटी की ओर चलते गए.

मेरीन ड्राइव पर पहुंच कर उस युवक ने कहा, ‘‘मैं यहीं रहता हूं,’’ उस ने एक भव्य इमारत की तरफ इशारा किया, ‘‘मैं आप को अपने घर ले चलता, पर क्या करूं, मजबूर हूं.’’

प्रणय ने उस की ओर सवालिया नजरों से देखा तो युवक ने अपनी गाथा सुनाई, ‘‘मेरा नाम रणवीर सिंह है. हम लोग ठाकुर हैं. बिहार में हमारी बहुत जमीनजायदाद है. लेकिन कईर् सालों से हम मुंबई में ही रह रहे हैं, क्योंकि यहां भी हमारा व्यापार फैला हुआ है. मेरे मांबाप बहुत पहले गुजर गए. मैं अपने चाचाचाची के साथ रहता हूं. जायदाद हाथ से निकल जाने के डर से वे मेरी शादी नहीं करना चाहते. जब भी कोई रिश्ता आता है, वे लड़की वालों को मेरे खिलाफ उलटासीधा बता कर भड़का देते हैं. इधर मेरी शादी की उम्र बीतती जा रही है. लाचार हो कर मैं ने सोचा, किसी वैवाहिक संस्था में अरजी दे दूं.’’

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