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लेखिक-पद्मा अग्रवाल

पैसे की अंधीदौड़ में उस ने पुरू से प्यार किया, शादी की. उस ने वह सबकुछ देने की कोशिश की थी  जो उस ने चाहा था. पुरू ने उसे कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया था. क्या पता वह सचमुच किसी मुसीबत में हो.

एक शाम वह मौल में शौपिंग कर रही थी. तभी वहां पुरू पर उस की निगाह पड़ी थी. उस के साथ एक लड़की भी थी. दोनों  की निगाहें मिल गईं थीं, लेकिन पुरू तेजी से भीड़ का फायदा उठा कर उस से बच कर निकल गया था.

अब तो वह ईर्ष्या से जलभुन  गई और विशेष के साथ लिवइन में  रहने लगी थी. उस का लक्जीरियस अपार्टमेंट, बड़ी गाड़ी, मंहगे ड्रिंक, हाई सोसायटी के लोगों की पार्टियों में उस की बांहों में बांहें डाल कर डांस करना...वह तो मानो फिर से सपनों की दुनिया में खो गई थी.

उस का दिन तो औफिस में किसी तरह बीतता, लेकिन शामें तो विशेष की मजबूत बांहों के साए में  हंसतेखिलखिलाते बीत रही थीं. उस ने पुरू की यादों की परछाईं को अपने से परे धकेल कर अपने लिवइन का एनाउंसमेंट मां के सामने कर दिया था.

उन्होंने उसे समझाने की बहुत कोशिश की थी कि स्त्री का यौवन सदा नहीं रहता है और पुरुष का भ्रमर मन यदि बहक कर दूसरे पुष्प पर अटक जाएगा तो ‍फिर से तुम एक बार लुटीपिटी सी अकेली रह जाओगी. परंतु उस के मन की धनलिप्सा और उस की लोलुपता ने सहीगलत कुछ भी सोचने ही नहीं दिया था और  वह इस अंधीदौड़ में चलती हुई एक के बाद दूसरा साथी बदलती रही.

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